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10.23.2017

"मेरी स्वच्छता अभियान"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     23 October     अभियान     No comments   

आजकल लोगों ने स्वच्छता-अभियान को प्रचार पाने का जरिया बना लिया हैं, ऐसी भावना हर जगह देखने को मिलती हैं, लोग अपनी खातिर स्वच्छ रहना पसंद नहीं करते हैं । आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में पढ़ते है, स्वच्छता-अभियान पर 'संपादक' की मन की बात, आइये पढ़े ...


मैसेंजर ऑफ ऑर्ट

बात यह नहीं होनी चाहिए कि हम स्वच्छता के लिए क्या कर सकते हैं, क्योंकि इसतरह के वाक्यांश महज़ औपचारिकताभर, चलताऊ और चोरमन लिए होते हैं । सर्वप्रथम हमने, ख़ासकर मैंने खुद की स्वच्छता के लिए क्या किया ? क्या मैंने तन की स्वच्छता से पहले मन की स्वच्छता को अमलीजामा पहनाया ? उत्तर मिलेगा-- नहीं ! मन को पवित्र रखकर ही खुद के देह की स्वच्छता, फिर अपने परिवारिक सदस्यों की स्वच्छता, संबंधियों -अतिथियों की स्वच्छता, घर के अंदर की स्वच्छता, फिर चहारदीवारी के बाहर की स्वच्छता, पड़ौस की स्वच्छता, समाज की स्वच्छता इत्यादि के बाद ही हम आगे की सुध लें, तो बढ़िया है, क्योंकि सम्पूर्ण राष्ट्र की स्वच्छता सामाजिक सफलता के बाद ही संभव है । हम शपथ व संकल्प लेकर केवल डींगे नहीं हाँक सकते, बल्कि कार्य - क्रियान्वयन के लिए अंगद के पाँव की भाँति दृढ़ निश्चयी बनने पड़ेंगे और इसे धर्मरूपेण देखने पड़ेंगे ।

अपनी बाल्यावस्था में जब मुझे स्वच्छता का मतलब पता नहीं था, तब मैं अपने सरकारी स्कूल में वर्गमित्रों के साथ समूह में झाड़ू - बुहारू किया करता, साथ पढ़नेवाली छात्राएं भी करती, परंतु वे परिसर की गोबर - लिपाई भी करती थी । हाँ, सबके कार्यदिवस बँटे थे । इस कार्य के बाद हमारे कपड़े गंदे हो जाते थे और एकमात्र स्कूली ड्रेस वाले बच्चे परिधानीय अस्वच्छता के बीच स्कूली स्वच्छता का मज़ा नहीं ले पाते थे । जब हाइस्कूल पहुंचा, तो भाँति - भाँति की गन्दगियाँ देखकर मन खिन्न हो उठा । मन को सँवारने का प्रयास किया, तो तन बेलज़्ज़ निकला, क्योंकि सफाई के बाद कूड़े - कचरे को कहाँ विसर्जित करूँ, हमेशा से यक्षप्रश्न रहा, जो आज भी यथावत है । सरकारी गड्ढे में फेंकने पर कोई समस्याएं नहीं आई, किन्तु ऐसे गड्ढे भरने के बाद दूसरे की परती जमीन पर कचरे फेंकना तो आफ़त मोल लेने जैसा था । परंतु 12 वीं करने के बाद जब इंजीनियरिंग कॉलेज गया, तो हमारे टेक्नोक्रेट मित्र अर्जुन, मनीष, आकाशदीप, रूपक, ओंकार, शानू, उमेश, अखि इत्यादि ने मिल गीले कचरे को गलाने की तथा सूखे कचरे को परती जमीन के हकदारों से संपर्क कर प्लानिंग बना डाले । इसके इतर मेस के बासी भोजन, सब्जियों के बेकार टुकड़े, फिर RTI द्वारा सम्प्रति विभाग से जानकारी इकट्ठेकर चिमनियों से निकले धुंए की व्यवस्था करवाये, तो सस्ता गोबर गैस, मानव मल का टॉइलेटिकरण, पेयजल की सफाई इत्यादि स्वच्छता अभियान से भी जुड़े । इंजीनियरिंग कॉलेज से निकलते-निकलते हमने यह गुण अपने जूनियर दोस्तों में भर दिए । आज हम सभी दोस्त अलग-अलग जगहों पर हैं, लेकिन वे सब जहाँ भी हैं, तन - मन - धन से समाजसेवा के विविध कार्यों में संलग्न हैं । मैं अभी गाँव में हूँ, जहाँ बाढ़ ने बहरहाल स्वच्छता को छिन्न - भिन्न कर दी है । मुखियाजी गंदगी देखकर कन्नी काट लेते हैं, किन्तु मैं तो स्वच्छता के लिए 'एकला चलो रे' को ठान लिया है ।

-- प्रधान प्रशासी सह संपादक ।


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