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8.20.2017

''मर्द हो ! सीता की पीड़ा क्या जान पाओगे ?"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     20 August     कविता     No comments   

स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत की उम्र 70 साल । जरावस्था में हो आए देश का अभ्युदय होना अभी शेष है, साथ ही वैचारिक गुलामी आज भी धर्मसंकट बन हमारे पीछे लगी हुई हैं ! स्त्री देह्यष्टि भी मर्द-मानसिकता की गुलामी में अद्यतन जकड़ी हुई हैं । वे पति के रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को अपनाकर भी उन्हें पा नहीं सकती ! सीता की पीड़ा हर काल में कायम है । आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट पर पढ़ते हैं, कवयित्री 'विश्वफूल' की अनकहीं दास्ताँ : एक कविता, आइये पढ़ते हैं:-------



"सीता की पीड़ा"

सीता !
जो धरती से उत्पन्न हुई,
किन्तु इनकी गोदलेई माता
व राजमाता सुनयना ने
उन्हें पालने में 
कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी ।
गोद से उतर पलंग पर
पलंग से उतर झूले पर
झूले से उतर पीढ़े पर....
समय व्यतीत करनेवाली 
सीता !
खाली पाँव
सासु माता के कहानुसार--
जंगल गयी
अवर्णनीय कष्ट झेली ।
सुख के होते ही 
सीता !
मर्यादा पुरुषोत्तम पति के आदेशानुसार--
फिर वनवास हुई
और
मृत्यु भी कठिन
कि धरती में समा गयी ।
सीता !
जो न पिता की हुई,
न माता की,
न सास-ससुर की,
न पति की
और 
न ही लव, कुश की !
सीता यानी माया
और माया 
.... किसी की नहीं होती !

नमस्कार दोस्तों ! 


'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।

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