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5.15.2017

"उनकी माँस पे मेरा रोमांस"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     15 May     कविता     No comments   

सभ्यता के आरंभ यानी आदिमानव काल में स्त्रीलिंग का कोई भी रूप यौन-तृप्ति लिए था, किन्तु सभ्यता में संस्कृति के शुरूआत से अब तक पुरुष प्रधान समाज ने नारी को ठगने की श्रमसाध्य कोशिश किये हैं ! कभी माँ को ममतामयी प्रतिमूर्ति बतलाकर, कभी पत्नी के हाड़ को उनकी मांस व रोमांस कह भोगकर और बेटी,बहु आदि रूप में  बाप व ससुर का डर  दिखाकर... यानी सबमें पुरुष वर्चस्व ! आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट लेकर आई है, श्रीमान अवधेश कुमार 'अवध' की आन-बान-शान वाली कुण्डलियाँ, जिनमें नारी की वंदना सहित नैतिकता का पाठ पढ़ाए गए हैं, तो आइये, इसे पढ़ते हैं ...




कुंडलिया त्रय

नारी  दुर्गा,  चंडिका, नारी  लक्ष्मी   रूप ।
तप्त हृदय में छाँव यह, शीत लहर में धूप ।।
शीत लहर में धूप, प्रकृति की उत्तम रचना ।
वात्सल्य  की  मूर्ति, नराधम  इनसे बचना ।।
करो अवध स्वीकार, पिता  की  राजदुलारी ।
मानव अब लो चेत, सृष्टि की जननी नारी ।।

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सादर वंदन  राष्ट्र को, आन, बान अरु शान ।
जिसकी पावन भूमि पर, सकल सिद्ध अरमान ।।
सकल सिद्ध अरमान, राष्ट्र  है  सबसे ऊपर ।
मातु पिता गुरु भ्रात, सकल हैं भारत भू पर ।।
कहत अवध हे नाथ, कभी नहीं होय अनादर ।
देव सरिस है राष्ट्र, झुकाओ  सिर को सादर ।।

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खूब  प्रतिष्ठा चाहिए, सबकी  होती चाह ।
नैतिकता के साथ ही, चुनो सत्य की राह ।।
चुनो सत्य  की राह, परीक्षा देनी होगी ।
रखना  होगा  भेद, बीच योगी अरु भोगी ।।
कहत अवध हे मीत, निभाओ दिल से निष्ठा ।
सबका  रक्खो  मान, बढ़ेगी खूब प्रतिष्ठा ।।

नमस्कार दोस्तों ! 


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