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5.22.2017

"क्यों कोई हारकर भी दूसरों के लिए आदर्श हो जाते हैं !"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     22 May     विविधा     No comments   

IPL क्रिकेट मैचों के लिए जिसतरह से क्रिकेटरों की नीलामी व डाक व निविदा होती है, मानों किसी हाट-बाज़ार में भेड़-बकरियों के लिए मोल-तौल हो रहे हैं  । सबसे दुःखद बात यह है कि क्रिकेट के इस अंदाज़ में जहाँ 100 करोड़ रुपये से ऊपर खर्च करके 8 फ्रेंजाइजी ने जितने क्रिकेटरों को ख़रीदा, तो उनमें से अधिकांश विदेशी खिलाड़ी शामिल हैं ! क्या हमारे देश में क्रिकेट खिलाड़ी नहीं हैं ? दरअसल, खिलाड़ी तो काफी हैं यहां, लेकिन पॉलिटिक्स और सट्टेबाजी के फेर में खेल कब खेल बन जाती है, खेल को भी मालूम नहीं होता । भारतीय क्रिकेट की संस्था BCCI ने आई पी एल में करोड़ों रुपये खर्च कर तो देती है, पर दृष्टिबाधित T-20 वर्ल्डकप चैंपियन टीम की खिलाड़ियों के लिए कुछ नहीं किया ? मीडिया में आलोचना होने पर तब कहीं खेल मंत्रालय ने 10 लाख रु. बतौर इनाम दिया । जहाँतक आजकल नीलामी हिटलर की घड़ी की हो रही है,तो ऐसे में खिलाड़ियों की नीलामी 'इंसानियत' को शर्मसार करती है लेकिन खेल ऊँच-नीच नहीं देखती है बस रोमांच देखती है ! आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में पढ़िये, आईपीएल के बाद 22 गजो की दुनिया ! संपादक की लेखनी से निकली एक झलक --


आई पी एल 10 में लगातार अच्छा मैच खेलनेवाला पुणे सुपर जायंट्स कम स्कोरर फाइनल मैच में मुम्बई इंडियंस से मात्र 1 रन से हार गया । हाथ में विकेट रहते 81 तक 1 ही विकेट खोये पुणे की हार विस्मयकारी है । मुम्बई के 129 रन यानी 130 रन के जवाब में 128 रन पुणे के । दिल कचौटने वाली हार । धीरज इसी में सहज हो जाता है कि आखिरकार यह क्रिकेट है ! ख़ैर ! हारकर भी पुणे दूसरों के लिए आदर्श हो गए । विनम्रता के पर्याय पुणे जायंट्स के विकेटकीपर महेंद्र सिंह धोनी के 7 वां आई पी एल फाइनल खेलने के सिर्फ रिकॉर्ड ही बने, जीतने के नहीं ! खेल में हार-जीत तो होता ही है, किन्तु हारने के बाद भी जिसतरह से पुणे छा गए, यह मुम्बई को मिले विजेता ट्रॉफी से भी बड़ी चीज होने को दर्शाता है ।
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