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5.30.2017

'क्या मैं अजनबी था ?'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     30 May     कविता     No comments   

क्या आधुनिक प्रेम वासनामयी हो गयी है ? क्या प्यार अजनबी हवाओं की भाँति व्हाट्सएप्प , फेसबुक-मैसेंजर या ट्विटर तक सीमित हो गयी है ? क्या प्यार चाहत के अलावा सिर्फ यह खोजता भर है कि लड़की जॉब में है या लड़के पैसे वाले है ! इन सभी सवालों का जवाब उन्हीं के पास हो सकता है, जिन्होंने सोनी-महिवाल, रोमियो-जूलियट' आदि की तरह बस प्यार किया हो, न कि उनके बीच सीरत से सूरत आवें । आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट लेकर आई है श्रीमान चमन सिंह की अजनबी कविता , आइये पढ़ते हैं ...





घने बादल छाए थे
निशा में घरघराये थे
तीव्र स्वर में टकराये थे
बिजली भी चमचमाई थी ।

वो लहर लहर-लहराई थी
एक भये विभोर हुआ था
जब मैंने उसको छुआ था
वो गले लिपट आई थी ।

वो बाहों में ही छाई थी
कोमल बालों की लट में
हर उस मंज़र के घट में
वो मेरे मुख में छाई थी ।

मैं उसके मुख में छाया था
वो मेरे बाहों में मग्न थी
मैं उसके बाहों में मग्न था
मौसम कुछ सुर्ख हुआ ।

फिर वो शर्म से लाल हुई थी
ज़रा सा मुस्कुराई थी
वो कुछ न बोल पाई थी
वो मंज़र भी अजनबी था ।

मैं भी अजनबी था
वो भी अजनबी थी...!!!

नमस्कार दोस्तों ! 


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