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4.17.2017

"छुई-मुई ज़िन्दगी में ढेर सारे बेवफ़ा में इक वफ़ा है ग़ज़ल"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     17 April     अतिथि कलम     3 comments   

हिंदी काव्यकला में ग़ज़ल, नज़्म, शे'र, कौव्वाली इत्यादि का असर धीरे-धीरे ख़त्म-से होते जा रहे हैं । ऐसे में वफ़ा से बेवफ़ा औए बेवफ़ा से वफ़ा की तकरार अब किसी भी महफ़िल में नहीं देखी जा रही हैं । परंतु आज मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट लेकर आई है, ग़ज़लों से भरी महफ़िल । इस ग़ज़ल में ज़िंदगीनामा लिए सच्चाई को प्रस्तुत कर रही है, गजलकार सुमन ढींगरा दुग्गल । आइये, हम इसे पढ़ते हैं और रमते हैं, अपनी भी ज़िंदगी की छुई-मुई में--- 





हसीन ख्वाबों की तो नर्मियाँ बहुत-सी हैं,हकीकतों की तल्खियाँ मगर बहुत-सी हैं;
दिलों के बीच अभी दूरियाँ बहुत-सी हैं, वफा की राह में दुश्वारियाँ बहुत-सी हैं ।

उलझ के रह गया दिल मेरा उसके कूचे में, हमारे शहर में तो बस्तियां बहुत-सी हैं;
कभी भुला न सके दिन हसीं वो बचपन के नज़र में,वो तितलियाँ आज भी बहुत-सी हैं ।

हमें कफस न नज़र आएगा रिवाज़ों का मगर, अभी भी पड़ी बेड़ियाँ बहुत-सी हैं;
खिज़ा ने पहना कहां ज़र्दे पैरहन पूरा, कि बची शज़र पे हरी पत्तियाँ बहुत-सी हैं ।

हमारी हसरतें पामाल हैं फकीरों-सी, उन्हीं की जीस्त में परछाइयाँ बहुत-सी हैं;
'सुमन' लबों पे तबस्सुम मैं फिर भी रखती हूं, लगी जिगर पे मेरे बरछियाँ बहुत-सी हैं ।

✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

चराग जलते रहे फिर भी रौशनी न रही ये, ज़िंदगी मेरी पहले-सी ज़िदंगी न रही;
भटक रहे थे लिए लब पे प्यास सहरा की, हमारे लब पे मगर आज तिश्नगी न रही ।

दिखाई दे रही है ये जो रौशनी तुमको हुई है, गैर की यारों वो अब मेरी न रही; 
उदास आँखें मेरी जाने ढूँढती हैं क्या ,बदल गया है सभी कुछ खुशी-खुशी न रही ।

बहुत तलाशी ज़मीं कुर्ब की तेरी मैंने, नसीब में कभी कुर्बत की चाँदनी न रही;
हवा चली है चमन में न जाने कैसी ये गुलों में, रंग कोई और ताज़गी न रही ।



नमस्कार दोस्तों ! 


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3 comments:

  1. UnknownApril 17, 2017

    वाह्ह! कम्माल दी! खूबसूरत ग़ज़लें!!👌👌💐💐

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    Replies
      Reply
  2. UnknownApril 17, 2017

    बहुत उम्दा वाह वाह मुबारक हो

    ReplyDelete
    Replies
      Reply
  3. bindu kulshresthaApril 17, 2017

    वाह्ह्ह्हह्ह वाह्ह्हह्ह उम्दा गज़लें सुमन बहन बहुत खूब


    ReplyDelete
    Replies
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