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3.23.2017

'आखिर मैं नास्तिक क्यों हूँ ?'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     23 March     फेसबुक डायरी     No comments   

                              आखिर मैं नास्तिक क्यों हूँ ?





क्योंकि मैं न तो धर्म को मानता हूँ, न जाति को ! इसलिए मैं नास्तिक हूँ । परंतु यदि कोई कट्टरता पर उतर आये और अपने-अपने धर्म की पुरजोर प्रशंसा करने लग जाय, तब मैं धर्म को भी मानता हूँ और जाति को भी, संस्कृति को भी । लोग अपने माँ-बाप को छोड़कर पत्थरों की मूर्ति को पूजते हैं, इसलिए नास्तिक हूँ मैं ! लोग अपने-अपने धर्म कबूल करवाने के लिए उनकी हत्या कर डालते हैं, इसलिए मैं नास्तिक हूँ । फख़त 5 वक्त नमाजी रहने के बावजूद, किन्तु व्यवसाय लिए झूठ-फरेबी में रहने के कारण ही मैं नास्तिक हूँ । वैज्ञानिक जमाने में भी बिना सबूत किसी को मानने की मनाही है, इसलिए मैं नास्तिक हूँ । आप ही सोचिये, यदि ईश्वर व अल्लाह होते तो न कोई भगत मरते, न सुखदेव और न राजगुरु । ... और इसलिए नास्तिक हूँ मैं ! यदि एक लाइन में कहूँ कि "मैं आस्तिक नहीं हूँ, क्योंकि मैं नास्तिक हूँ ।"
देश के प्रति प्राण गँवाने वाले उन महान शहीदों को सादर प्रणाम ! मेरे लिए अल्लाह-ईश्वर यही है, जिनके कारण हम स्वतंत्र हवा में साँसे लेते हैं ।

T.Manu--
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