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3.25.2017

"अज्ञात प्रेम की ज्ञेय परिभाषा : प्रीति 'अज्ञात' (ब्लॉगर-एक्टिविस्ट)"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     25 March     इनबॉक्स इंटरव्यू     8 comments   

"अज्ञात प्रेम की ज्ञेय परिभाषा : प्रीति 'अज्ञात' (ब्लॉगर-एक्टिविस्ट)"

प्रेम किया नहीं जाता, हो जाता है.... ऐसा हम सुनते आये हैं । प्रेम व प्यार में 2.5 अक्षर है या नहीं, यह दूसरी बात है, परंतु प्रेम का विश्लेषण करना अथवा उसे परिभाषित करना सरल, सहज और अनपेक्षित नहीं है ! प्रेम लिए प्रेमी वा प्रीति लिए प्रीत अपत्यवाची शब्द है और पर्यायार्थ हैं ।
चूँकि प्रेम व प्रीति किया नहीं जाता, हो जाता है और वहीं 'प्रेम' व 'प्रीति' परिभाषित होकर भी अपरिभाषित है, फिर तो यह ज्ञात होकर भी 'अज्ञात' है । क्या पता यहाँ उद्धृतार्थ-कारण यह रहा या अन्य ? 'मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' के 'इनबॉक्स इंटरव्यू' की मासिक कड़ी में ऐसी ही शख़्सियत से रू-ब-रू कराई जा रही है, जो प्रीति भी है और अज्ञात भी । किन्तु 'मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' ने उनमें ज्ञात 'बहुमुखी-प्रतिभा' को ढूँढ़ कर इस अप्रतिम-शब्दों के धनिका (मल्लिका) श्रीमती प्रीति 'अज्ञात', अपनी संक्षिप्त परिचय के साथ, यथा:-

जन्मस्थान:- भिंड (म. प्र.),
जन्मतिथि:-19 अगस्त 1971 ई0,
शिक्षा:- स्नातकोत्तर (वनस्पति विज्ञान),
सम्प्रति आवास:- अहमदाबाद (गुजरात)
कार्यरत:-संस्थापक-संपादक, ब्लॉगर-सोशल एक्टिविस्ट ।

संपादन:-
~~~~~

1.)हस्ताक्षर (मासिक वेब पत्रिका), 
2.)एहसासों की पंखुड़ियाँ,
3.)मुस्कुराहटें.... अभी बाकी हैं,
4.)मीठी-सी तल्खियाँ (भाग-२ और ३)

प्रकाशित रचना-संसार:-
~~~~~~~~~~~~~

"मध्यांतर" (कविता-संकलन),

अन्य के साथ रचना-प्रकाशन:-(कुल संख्या =10):-
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
  
1.)एहसासों की पंखुरियाँ, 
2.)मुस्कुराहटें...अभी बाकी हैं, 
3.)हार्टस्ट्रिंग्स "इश्क़ा", 
4.)काव्यशाला, 
5.)गूँज, 
6.)सरगम TUNED, 
7.)शब्दों के वंशज, 
8.)पुष्पगंधा, 
9.)100 क़दम, 
10.)सृजन शब्द से शक्ति का.... ।

पत्रिका और अन्य मंच से रचना - प्रकाशन और प्रसारण:-
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

1.)अहा ! ज़िंदगी, कादम्बिनी आदि पत्र-पत्रिकाओं से रचना-प्रकाशन,
2.)मासिक वेब पत्रिका 'ज्ञान मंजरी' में नियमित स्तंभ 'कैमरे की नज़र से',
3.)'साहित्य-रागिनी' वेब पत्रिका में मुख्य संपादक (सितंबर 2013 से सितंबर 2014 तक)
4.)III और  IV 'दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव' हेतु कविता चयनित तथा प्रकाशित, 
5.)'विश्व पुस्तक मेला' दिल्ली-2016 में 'गूँज' एवं 'रेवान्त' के मंच से काव्यपाठ, 
6.)VI अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, बैंकॉक (थाईलैंड)-2016 में आलेख प्रस्तुत, 
7.)'विश्व पुस्तक मेला' दिल्ली-2017 में 'गूँज' के मंच से काव्यपाठ ।

पुरस्कार और सम्मान:-
~~~~~~~~~~~~~

1.)'म.प्र पत्र-लेखक संघ' द्वारा पुरस्कृत,
2.)साहित्य-गौरव सम्मान-2013 (अखंड भारत' मासिक पत्रिका), 
3.)राष्ट्रीय सम्मान-जनवरी 2015 ('कवि हम-तुम' संस्था),
4.)परिकल्पना साहित्य सम्मान-2015 (अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, थाईलैंड),
5.)साहित्य श्री सम्मान-2016 (ग्रामीण समाज सेवा समिति, भरतपुरी, गोण्डा, उ.प्र.),
6.)शान-ए-भारत अवार्ड-मार्च 2016 (प्रतिमा रक्षा समिति, करनाल, हरियाणा),
7.)म.प्र. महिला रचनाकारों के लिए 'शब्द-शक्ति सम्मान' (सितंबर 2016),
8.)सावित्री बाई फुले women empowerment award-जनवरी 2017 (प्रतिमा रक्षा समिति , करनाल, हरियाणा) ।

आइये, 'मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' द्वारा 'अज्ञात' व्यक्ति की खोज पूरी कर ली गई है और उक्त व्यक्तित्व (सकृतित्व) के  "इनबॉक्स इंटरव्यू" को आप सुविज्ञ पाठको तक पहुंचाने में कोई कोर -कसर नहीं रख रहा हूँ । कवयित्री और एक्टिविस्ट श्रीमती प्रीति 'अज्ञात' के 14 गझिन प्रश्नों के सरल और सहज जवाब पढ़िए, बहुत मज़ा आयेगा:---




1.)आपके कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र  के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को  सुस्पष्ट कीजिये ? 

 मूलतः ब्लॉगर, स्वतंत्र रचनाकार, सामाजिक कार्यकर्त्ता हूँ। महिलाओं पर हुए शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने तथा उन्हें सम्मान पूर्वक जीना सिखाने के लिए डेढ़ वर्ष पूर्व Saudamini, 'The Voice Unheard' ( सौदामिनी - एक अनसुनी आवाज ) की स्थापना की। Women Empowerment के लिए इस माध्यम से काम कर रही हूँ। लगभग 15 वर्षों से बच्चों और वृद्धजन के लिए अपनी सेवाएँ दे रही हूँ। 




'हस्ताक्षर' हमारी साहित्यिक पत्रिका है, जिसमें स्थापित साहित्यकारों के साथ ही नए प्रतिभावान रचनाकारों को अपने हर अंक में शामिल किया जाता है। इसके लिए मात्र एक ही नियम है कि लेखनी में ताक़त होना चाहिए। हम जुगाड़-प्रथा से कोसों दूर एक ईमानदार पत्रिका के रूप में उभर रहे हैं, जो धर्म और राजनीति से परे एक सकारात्मक समाज में जीने की उम्मीद जगाने को प्रयासरत है। करीम पठान 'अनमोल' जैसे कर्मठ, लगनशील और उत्तम सोच रखने वाले साथी संपादक के साथ ने इसे और बेहतर बना दिया है। हम दोनों को हमारी टीम के सदस्यों का सहयोग भी सदैव मिलता रहा है। यह हम सब की पत्रिका है जिसे पाठकों और रचनाकारों ने भरपूर स्नेह दिया है। 

प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?

शिक्षा के माहौल में ही जन्मी हूँ। मेरे पिता पी एच डी हैं तथा वे अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर और महाविद्यालय के प्राचार्य रहे हैं, माँ भी डिग्री कॉलेज में इतिहास की व्याख्याता थीं। उन्होंने राजनीति शास्त्र से भी एम ए किया है। अभी दोनों सेवानिवृत्त हो चुके हैं। मेरा भाई, मुझसे एक वर्ष बड़ा है। वो एक अच्छे पद पर अमेरिका में कार्यरत है। विवाह पूर्व एक वर्ष मैं भी कॉलेज में वनस्पति विज्ञान की सहायक व्याख्याता रही हूँ। मेरे नाना जी भी पी एच डी थे और मिर्ज़ापुर (उत्तरप्रदेश) के महाविद्यालय में प्राचार्य पद पर रहे। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में वे पी एच डी गाईड के तौर पर भी अपने सेवाएँ देते रहे। उन्हें फ्रेंच भाषा में गोल्ड मैडल भी मिला था। मेरे पति रिसर्च में हैं और उन्होंने भी फार्मेसी में पी एच डी किया है। बच्चे भी पढ़ने में ख़ासी रूचि रखते हैं। 

यदि यूँ कहा जाए कि मैं किताबों के साथ ही पली-बढ़ी हूँ तो भी गलत न होगा। बचपन से अब तक एक-दो क़रीबी मित्रों के अलावा यही मेरी सच्ची साथी और उत्तम मार्गदर्शक रही हैं।

प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा  लाभान्वित हो सकते हैं ?

 'सौदामिनी' के द्वारा उन लोगों की  मेल/सन्देश /फ़ोन के माध्यम से counselling की जाती है जो अपने जीवन में कभी-न-कभी यौन शोषण या घरेलू हिंसा का शिकार हुए हैं। उन्हें यह अहसास कराया जाता है कि जो कुछ भी हुआ, उसके लिए उन्हें स्वयं को दोषी या दया का पात्र समझने की कोई आवश्यकता नहीं। जो समाज/परिवार/मित्र आपको गलत मानते हैं बेहतर है आप उनसे दूरी  बनाकर प्रसन्न रहने की कोशिश करें। क्योंकि दोषी आप नहीं, उनकी दूषित सोच है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा और दुःख भी कि स्त्रियों और बच्चों के अलावा पुरुष भी ऐसे हादसों के शिकार होते आये हैं। इन लोगों का उबरना और खुशहाल जीवन जीना इन जैसे कई अन्य लोगों को प्रेरणा देता है, भले ही वो अपना दुःख हमसे कहें न कहें पर हमें ख़ुशी है कि उनकी सोच में कुछ बदलाव तो अवश्य आता होगा।

'हस्ताक्षर' में नई प्रतिभाओं को अवसर मिलता है कि वो वरिष्ठ साहित्यकारों को पढ़ें और स्वयं भी पत्रिका में प्रकाशित हों। अब तक 400 से अधिक रचनाकार हमसे जुड़ चुके हैं। लाभ की बात अगर की जाए तो दोनों ही पक्षों को बराबर होता है।




समाज में अच्छाई और बुराई दोनों ही विद्यमान हैं। बुरी घटनाओं का गहरा असर तो पड़ता ही है और उन पर चर्चा भी होती है पर साथ ही सकारात्मक बातों और 'अच्छा भी होता है' की थीम को लेकर लिखने से कभी नहीं चूकती। अब ये पाठकों पर है कि इससे लाभ लें या कंधे उचकाकर आगे बढ़ जाएँ। कहीं कोई बाध्यता तो संभव हो नहीं सकती। 

प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?

 हर अच्छे कार्य की आलोचना तो होती ही है। यहाँ तक कि वो क़रीबी मित्र भी एक निश्चित दूरी बना लेते हैं जिनका साथ मिलने का पूरा यक़ीन होता है। पारिवारिक दायित्व और घर तो प्राथमिकता सूची में सर्वप्रथम होते ही हैं पर कई बार अस्वस्थता या अन्य कारणों से थोड़ी बहुत मानसिक परेशानियाँ अवश्य आई हैं। लेकिन अब मैं इन सबके साथ जीने, इनसे उबरने या फिर इग्नोर कर देने में अभ्यस्त हो चुकी हूँ। उन लोगों के लिए मैं कोई तनाव क्यों लूँ? जो न मेरे दुःख में कभी साथ खड़े हुए और न ही ख़ुशी में दिल से शामिल हो सके। जबसे अपेक्षा रखनी बंद की, जीवन आसान हो गया है। हाँ, अपनी तरफ से किसी के लिए स्नेह में कोई कमी न आने दी और न ही कोई मलाल रखा है।

प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?  

 आर्थिक दिक्कतें तो नहीं कह सकती क्योंकि एक ऑनलाइन पत्रिका चलाने एवं अन्य कार्यों के लिए जो खर्च होता है वो मैं दे पाती हूँ। ये बात जरूर है कि कई प्रिंट पत्रिकाओं का हश्र देख 'हस्ताक्षर' को प्रिंट में लाने का सोचकर रह जाना पड़ता है। पत्रिका निकालने से लेकर पाठकों तक पहुंचाने में काफी खर्च होता है। वार्षिक सदस्यता लोग एहसान की तरह देते हैं। रचनाकारों को पारिश्रमिक भेजना इत्यादि आवश्यक मुद्दे भी इससे जुड़े हैं। विज्ञापन जुटा पाना और बाकी जोड़-तोड़ में जुटने का समय और साहस फ़िलहाल हमारी टीम में किसी के पास नहीं। जब होगा तो अवश्य इस बारे में चर्चा होगी।

प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !

स्कूल के दिनों से लिखती और प्रकाशित होती आ रही हूँ लेकिन इसे अपने कार्यक्षेत्र की तरह चुनने का कभी सोचा नहीं था। बस, ऐसा करना सुकून देता था। पेड़-पौधों से बचपन से बतियाती आई हूँ, सेवा-भाव दिली प्रसन्नता देता रहा है। स्केचिंग, पेंटिंग, फोटोग्राफी का भी बहुत शौक़ रहा है। पर उन दिनों ये सब हॉबी में गिना जाता था और भविष्य के लिए तीन ही विकल्प हुआ करते थे। डॉक्टर बनो, इंजीनियर बनो या शादी कर लो। डॉक्टर मैं बन नहीं सकी, इंजीनियर बनने में कोई दिलचस्पी नहीं थी, शादी तो होनी ही थी। खैर, बॉटनी से एम एससी किया और एक साल अध्यापन कार्य भी। टीचिंग में मुझे बहुत मजा आता था। छोटे बच्चों को भी कई वर्षों तक पढ़ाती रही हूँ। शादी के बाद अमेरिका जाना पड़ा और उन दिनों जारी बी एड तथा डिप्लोमा इन पब्लिक रिलेशनशिप कुछ माह से अधूरा रह गया। बस ये लेखन ही था जो कभी भी पूरी तरह से नहीं छूटा। मेरे शौक़ और कार्यों का फैलाव इतना है कि फुल टाइम जॉब नहीं कर सकती। ऐसे में अपनी सुविधा से ऑनलाइन लिखने से बेहतर और कुछ नहीं! दुनिया वाक़ई में गोल है और मैं तमाम मोड़ों से निकलकर वहीँ वापिस आई हूँ, जो हमेशा से तसल्ली और ख़ुशी का कारण बनता रहा है। अपने विषय से अत्यधिक लगाव के कारण दो वर्षों से बोन्साई क्लास में भी जा रही हूँ और हर बार कुछ नया सीखने की ललक ने मुझे संस्कृत पढ़ने को बाध्य कर दिया। हालाँकि यह स्कूल की पढाई जैसा है, जहाँ प्रेजेंटेशन भी होते हैं और एग्जाम भी। पर जब कुछ करना अच्छा लगता है तो समय कभी आड़े नहीं आता!

किसी के भी परिवार के सदस्य हर उस कार्य से हमेशा संतुष्ट रहे हैं जिससे उनकी दिनचर्या पर कोई असर न आए। मेरी प्रथम प्राथमिकता भी वही हैं। उनका सहयोग भी मेरे साथ रहता ही है। राहें तो सभी अपनी स्वयं ही तय करते हैं, कोई अड़चन न दे वही सौभाग्य है।

प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !

 जैसा कि मैनें पूर्व में ज़िक्र किया कि पूरी टीम के साथ करीम पठान 'अनमोल' हस्ताक्षर का प्रमुख स्तम्भ हैं। इससे पहले भी एक अन्य पत्रिका में हमने डेढ़ वर्ष साथ काम किया है। हमारी सोच और समझ एक जैसी है और एक-दूसरे पर पूरा भरोसा भी है हमें। वो मेरे छोटे भाई हैं, बहुत प्यारे दोस्त और परिवार के सदस्य जैसे हैं। और हाँ, उनकी उम्दा ग़ज़लकारी की मैं ख़ासी प्रशंसक भी हूँ। मज़ेदार बात ये है कि हम ऑनलाइन ही एक दूसरे से जुड़े हैं।इसके अलावा मेरा जो कार्यक्षेत्र है, वो मैं स्वयं ही संभालती हूँ।

प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ?  इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?

 समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर कर एक सकारात्मक सोच उत्पन्न करने का प्रयास हम सदैव ही करते रहे हैं। हमारी भाषा और मूल्यों का भी बराबर सम्मान होता रहा है। संस्कृति का तो कह नहीं सकते पर मानवीय सोच तो इससे अवश्य ही प्रभावित होती है। यही हमारा उद्देश्य है और नैतिक धर्म भी।

प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !

 भ्रष्टाचारमुक्त समाज का आह्वान किया जा सकता है, पर ये प्रत्येक नागरिक को स्वयं ही करना है। सरकार या कोई संस्था आपको रिश्वत न लेने-देने के लिए कह सकती है। कचरा सही जगह पर फेंकने के लिए डस्टबिन रखवा सकती है। स्त्री के प्रति सम्मान भाव रखने की बात कह सकती है पर ये करना तो हरेक को खुद ही होगा। सब अपना-अपना घर संभाल लें तो सब कुछ स्वतः ही ठीक हो जाएगा। योजनाएँ बनाना और ख़त्म करना भी पैसे को जाया करना ही है। हर छोटे-बड़े अपराध की सजा तुरंत हो, तो समाज और राष्ट्र दोनों का भला भी उसी गति से दृष्टिगोचर होने लगेगा। हमें एक अपराधमुक्त, भयमुक्त समाज की स्थापना पर बल देना होगा। 

प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये।

जी, नहीं। न आर्थिक और न ही कोई और सहयोग किसी से कभी मिला है। अब कोई अपेक्षा भी नहीं! कोई राह में रोड़े न अटकाए, मानसिक परेशानी न बढ़ाए। मैं इसे ही सबका सहयोग मान खुश हो लेती हूँ। पत्रिका में करीम भाई,, इमरान भाई और टीम का साथ है ही, जो मैं पहले ही स्पष्ट कर चुकी हूँ। 

प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी  धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?

 जी, अभी तक तो ऐसा कुछ नहीं हुआ। हाँ, कहकर मुक़र जाने वालों की कोई कमी नहीं, पर यह तो इन दिनों एक सामान्य-सी बात हो गई है। इन बातों पर अब दिल नहीं दुखा करता। 

प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?

 जी ।





सौदामिनी । इसमें सभी जानकारी गोपनीय रखी जाती है तथा प्राप्त मेल और वार्तालाप तुरंत ही नष्ट कर दिया जाता है। यहाँ आप एक परिवार के सदस्य/मित्र की तरह खुलकर अपनी परेशानी बाँट सकते हैं -



प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए ? 

 मुझे कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुई है ।








(नोट:- सम्मान और पुरस्कारों की सूची परिचय के साथ दी गई है ।)
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ? 

 'हस्ताक्षर' का कार्य तो पूर्ण रूप से ऑनलाइन एवं फ़ोन द्वारा ही संचालित होता है। 'सौदामिनी' के लिए कई बार व्यक्तिगत तौर पर मिली भी हूँ।

सन्देश तो बस यही कि जितना अच्छा दूसरों के लिए कर सकते हैं, कीजिए और उस बात को हम तक पहुँचाने में जरा भी संकोच न करें। क्योंकि लाख बुराइयों के बीच कहीं अच्छा भी होता है यह उम्मीद सबके  दिलों में जीने की ललक बनाये रखती है और आशाओं को बिखरने नहीं देती।

आप यूं ही मुस्कुराते रहें, 'मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' की तरफ से भविष्योज्ज्वलता लिए शुभकामनायें:---




नमस्कार दोस्तों ! 


मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो  हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों  के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com


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8 comments:

  1. Preeti 'Agyaat'March 25, 2017

    धन्यवाद :)

    ReplyDelete
    Replies
      Reply
  2. Shivam ShuklaMarch 25, 2017

    bhut sundar prayas di@

    ReplyDelete
    Replies
    1. Preeti 'Agyaat'March 25, 2017

      धन्यवाद :)

      Delete
      Replies
        Reply
    2. Reply
  3. UnknownMarch 25, 2017

    प्रतिभाशाली मेहनती व्यक्तित्व की धनी श्रीमती प्रीती अज्ञात जी के इंटरव्यू के लिए शुक्रिया ☺☺☺☺☺☺☺������

    ReplyDelete
    Replies
    1. Preeti 'Agyaat'March 25, 2017

      This comment has been removed by the author.

      Delete
      Replies
        Reply
    2. Preeti 'Agyaat'March 25, 2017

      धन्यवाद :)

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      Replies
        Reply
    3. Reply
  4. शब्द मसीहाMarch 27, 2017

    Hardik badhaai in upalabdhiyon ke liye . Maa Sharde ka aashirvaad sadaiv aap par bana rahe .....shubhkaamnayein

    ReplyDelete
    Replies
    1. Preeti 'Agyaat'October 26, 2017

      धन्यवाद

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      Replies
        Reply
    2. Reply
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