रंगों की आवारगी में मस्तानी-होली की खुमारी छा चुकी है ! नव-जोड़ियों में मौसम-प्रेम के साथ अनोखी मादकता लिए रहती हैं , लेकिन प्रेम कब लीला बन उभरती हैं , मालूम ही नहीं चलता ! यह प्रेम ऐसा जीव है कि बुआ 'होलिका' प्रह्लाद के पीछे सती हो गयी और भतीजे प्रह्लाद जीवित रह गया । इसके लिए मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट के अन्य स्तम्भ पढ़ने होंगे ! तब कैसी प्रेम थी, अब कैसी प्रेम है ? इसके लिए आज के अंक में आप कद्रदान पाठकों के लिए 'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' लेकर आई है , कवयित्री रिंकी वर्मा की अनोखी प्रेम-रसीली कविता...। आइये, इसे पढ़ते हैं:--
तब --
आयी बंसती बयार और फागुन की बौछार,
शुरू हो गया देखो धरती का श्रृंगार ।
टेसुओं ने रंग दिया आँचल,
गुलमोहर ने भर दिया मांग।
प्रेम में इठलायी धरती,
चटकते पलाश ने ली अंगड़ाई ।
अमिया की महक से गंध-गंध देह हुयी,
महुए की महक से कसर पूरी हुयी।
अब,
शुरू हो जाएगी धरती की प्रेम परीक्षा,
जब जर्रा-जर्रा दहकने लगेगा।
अपनी ही गरम साँसों से उबलती धरती,
ताकने लगेगी चेहरा आकाश का।
कहां मेहरबान होगा आकाश भी जल्दी,
दिन-रात निहारेगा ,अपनी प्रियतमा को ।
फटने लगेगी धरती का कलेजा जब दर्द से,
पिघलेगा आसमान भी तब प्रेम से।
प्रेम की बूँदो से भर देगा धरती का दामन।
मिलन की सोंधी खुशबू से महकेगा वातावरण।
फिजा महकी-महकी होगी,
फिजा बहकी-बहकी होगी।
फिर तृप्त धरती कोई बीज अंकुरित करेगी !
पूरी हो जाएगी धरती की अभिलाषा,
यही है उसकी प्रेमगाथा।
क्योंकि --
यही प्रेम है,
यही मिलन है,
यही सृष्टि है।
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
0 comments:
Post a Comment