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3.02.2017

''चंदा मामा दूर के ... आओ न मामा मेरे घर, धरती पर !"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     02 March     अतिथि कलम     No comments   

निश्चितश:, दुनिया काफी बदल चुकी है और हम भी काफी बदल चुके हैं तथा रिश्ते भी अदल-बदल हो अद्य-कलंकित हो रहे हैं, परन्तु इन्ही कलंकित-रिश्तों के बीच दिल और डील के बीच आकर्षण कई आकार ग्रहण कर प्यार में ऐसे पनपाते हैं कि मत पूछो --- साइंस की बातों को धता बताते हुए बचपन से लेकर बुढ़ापे तक हम 'चाँद' को मामा कहते रहते हैं ! कोई उफ़ नहीं, कोई वफ़ा नहीं, फिर भी चाँद में दाग !! ऐसा कैसे हो सकता है, भाई ? लेकिन है, यह कहना बेकार कि यह घाटी है ! आज मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट  के इस अंक में पढ़िए श्रीमान पंकज त्रिवेदी जी का निबंध कि कैसे है चाँद में दाग ? कैसे है दागी मामा ?? अगर चाँद को स्त्रीलिंग माने तो.... यह कैसे लागी उन्हें कलंक ? आइये पढ़ते हैं..... 




                               आखिर मामा है न मेरा...!
                                         
कितनी उदासी छाई है । चाँद याद है तुझे ? मेरी माँ कहती थी मुझे- देख, ये जो चंदा है न ! वो मामा है तुम्हारा । जब भी याद करोगे, दिखाई देगा । जब भी उसे टकटकी नज़रों से देखोगे, कभी भी डर नहीं लगेगा... वो तुम्हारा मामा है ! आज तुमसे आँखें नहीं मिला पाता हूँ । माँ भी तो नहीं है अब और मामा बनकर सारी ज़िंदगी तुमने मुझे ही 'मामा' बना दिया न ! तुम मेरे मामा नहीं हो, मेरा चंदा मामा बिलकुल नहीं हो । माँ जब नहीं रही तो तुम्हारा फ़र्ज़ नहीं था क्या ? उन्हें देखने तक नहीं आए । माँ तो अपने भाई की इतनी तारीफ़ करती थी कि दुनिया में एक ही भाई है, जिसके लिए माँ हमेशा गर्व करती, उन्हें देखकर खुश होती और पलपल मुझसे बात करते थकती नहीं थी ।

चंदा मामा हो तुम ! क्या किया तुमने आजतक मेरे लिए ! दुनिया के बच्चों के लिए ! बड़ा होने के बाद अब सब समझ रहा हूँ कि तुमने दुनिया की सभी माताओं पर डोरे डाल रखे हो ! उनके भाई होने का दंभ भरते हो और दूर बैठे-बैठे मस्कुराते हो । उन सभी माताओं के बच्चों का मामा बनकर उनसे छल करते हो । अपनी ज़िम्मेदारी को उठा नहीं सकते , तो दुनिया की उन औरतों पर डोरा डालना बंद करो । उस मासूम से बच्चों को ऐसे भ्रम में पलने न दो कि उनका भी एक मामा है, जो सदियों से छल कर रहा है और हमारी माताएं अत्यंत भावुकता से गर्व और अभिमान से कहती है-- 'देखो बेटा ! तुम्हारा चंदामामा कितना ख़ूबसूरत है !"

माँ ! अब तो तुम भी नहीं हो । अगर होती तो दिखाती तुम्हारे इस भाई के बेवफ़ा अंदाज़ को । कभी अपना आधा चेहरा छुपा लेता है तो कभी बादलों की आड़ में जा छुपता है ......   किस मुंह से हमसे आँखें मिलाएगा ? दुनिया के हम सभी बच्चों की आँखों में वो देख नहीं पाएगा, क्योंकि हमेशा से  हम सब की आँखों में वो धूल झोंक रहा है । माँ, आज तुम होती तो दिखाकर कहता कि देख अपने भाई की करतूत ! आज मेरे पास तुम नहीं हो, यह बात वो जानता है, इसलिए तो अपना पूरा चेहरा गोलमटोल-सा दिखाकर हम सभी पर अपनी तेजस्वी आभा का रुआब झाड़ रहा है । मगर वो भी जानता है कि सदियों से उसने मासूम बच्चों से छल किया है । उन सभी बहनों से भी जिसने उसे अपना भाई माना और अपने बच्चों को सदा कहती रही है कि तुम्हारा मामा तो यही है – चंदामामा ! 

माँ ! तुम जहाँ भी हो, आज तो सच बता दो...! मेरा कोई मामा था भी...या नहीं  या तुमने भी इस चंदामामा की तरह हमसे छल किया ? अपने भाई की तारीफ़ तो करती रही, जब तक जीती रही तुम ! मगर कभी तो कहती कि – बेटा, तुम्हारा कोई मामा नहीं  है और उस आस में मत रहना ! आज मैं न कुछ कह सकता हूँ और न ही रो सकता हूँ । खैर ! झूठ-मूठ का ही सही – मेरा चंदामामा आज कितना सुहावना लगता है ! माँ, मैं समझदार भले ही हो गया हूँ, मगर तुम्हारी बात को टाल नहीं सकता ! तुमने कहा था, जो, याद है कि 'बेटा, जब भी तुम उदास हो जाओ, किसी दुःख में या बोझ  तले दब जाओ, तब अपने इस चंदामामा को टकटकी नज़रों से ताकते रहना ! वो तुम्हें जरूर कोई न कोई रास्ता दिखायेगा ।

माँ ! आज मैं अपने चंदामामा को देख रहा हूँ और तुम्हें याद करता हूँ.. आखिर मामा है न मेरा ! बावजूद चन्दा मामा दूर के...... पर मामा है तो मेरा !


नमस्कार दोस्तों ! 


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