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2.09.2017

'सूक्ष्म काया के बाद कहाँ' , हे भगवान् !

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     09 February     कविता     No comments   

                         'सूक्ष्म काया के बाद कहाँ' , हे भगवान् ! 

क्या भगवान अपनों के मौत पर रोते है ? उन्हें भी दर्द होते होंगे, क्या ? क्या वे भी जज्बाती होते हैं ? क्या वे सिर्फ अपने बच्चों को रचकर 'उनका तमाशा' देखते है ? भगवान क्या गैरों के लिए भी हैं ? किन्तु उनके लिए अपना और गैर क्या ? ऐसे ही काफी सवाल है , जो हमारे मस्तिष्क में आते हैं, उमड़ते-घुमड़ते हैं !  -- पर जज्बातों के डर से या धार्मिक-फेरों के डर से प्रश्न का प्रतिप्रश्न लिए चुप हो जाते हैं ! आज मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट लेकर आई है, इन्ही सवालों के जवाब खोजती कवयित्री सुश्री कात्यायनी दीपक सिंह की कवितायेँ ... भगवान् से प्रश्न ...! आइये, पढ़ते हैं:-






"वीरानगी का अहसास"

स्थूल काया से 
सूक्ष्म काया की तरफ बढ़ते-बढ़ते...
कहां जाती है अंत में यह ?

धरती से विदा होने के बाद
आसमां में मिल जाती है क्या
यह सूक्ष्म काया ?
पर आसमां तो शून्य है !

ओ हमारे भगवान !
क्या कभी लौटकर 
आना होता है, यहाँ  ?
चले भी जाते हैं, अचानक
किसी को छोड़कर
बगैर कहे !

ये रिश्ता, ये नाता
सबकुछ क्यूं है आखिर ?
अकेले आना--अकेले जाना
फिर क्यूं लगता है, दुनियावी भीड़
आसपास ?

माया का जाल,
भीग-विलास,
सब मोहमाया--
दुआ--प्रार्थना
क्या कुछ नही होता ?

मौत पर इंसान रोता है
क्या कभी भगवान भी रोते होंगे ?

वक्त ख़ामोश है,
यहाँ भी, वहाँ भी
गुजरते चले जाता है !
पर तब गहरी नींद में 
सोया इंसान
या कोई भी प्राणी
कभी नही जागता 
कभी भी-- 
किसी के लिये भी ।

~_~~_~~_~~_~~_~~_~~_~~_~~_~~_~~_~

यादें 

आज रात मैंने 
अपने आप से
किया एक वादा,
नही करूंगी
अब कभी भी
याद तेरे--
पर आधी रात को
नींद दे गई धोखा
और चली गई 
दूसरों के आगोश में 
तत्काल !

तभी अचानक--
इस कदर तुम्हारी याद हो आई
भूल गई मैं अपने आप को तब
और अपने वादे को
दौड़ पड़ी मैं, 
छत पर और खुली आँखें...
देखने लगी चांद-सितारे
साथ तुम्हारे जब होती थी,
यही चांद तारे बन जाते थे, 
गवाह हमारे मिलन के ।

सर्द हवा के झोकों में
मैं खोजती रही
नरम आगोश तुम्हारा
और सांसों की 
गरम-गरम तपिश ।

रोज ब रोज, 
ऐसा ही होता है...
खाती हूँ कसमें 
और 
करती हूँ वादा 
खुद से
नही करूंगी याद 
तुम्हें/पर 
खुद तोड़ वादे को
डूब जाती हूँ 
तुम्हारी यादों के 
हहराते
समंदर में ।


नमस्कार दोस्तों ! 

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