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12.11.2016

"एक शरीफ़ लेखक की शरीफ़ाई 'कोठागोई"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     11 December     समीक्षा     5 comments   

                      "एक शरीफ़ लेखक की शरीफ़ाई 'कोठागोई"

जब मैं इंजीनियरिंग कॉलेज में था ; तो कुछ मुज़फ़्फ़रपुरवासी कक्षा-दोस्त, जो तब 'चतुर्भुज स्थान' के 'सलमा-सितारेवाली' रंगीन-कहानियाँ सुनाया करते थे ।  मैं भी तबतक 'कोठा' नाम की भ्रांतियाँ  ..... 'वेश्यालय', 'धंधेवालीअड्डा' या और नीचे अगर उतरूं.... तो ना चाहते हुए भी कहना पड़ता है.... 'रंडीखाना' जैसे-शब्द जेहन में ऐसे उतर गए थे, जैसे न चाहते हुए 'कब्ज़' पेट में लसक के रह ही जाता है, परंतु 'कोठागोई' पढ़ने के बाद मेरे विचार धराशायी हो गए कि वैसी जगह कभी गानेवाली भी रहती थीं..... ! दोस्तों के विचार वास्तविकता की धरातल से काफी दूर 'झिलमिल-सितारों' तक ही बिम्बित थी । स्वनामधन्य लेखक श्रीमान् प्रभात रंजन ने नर्तन-शब्द-विन्यास  को घुँघरू के साथ गायकी को जोड़ कोठाई-हलचल को 'कोठागोई' नाम दे दिए और यह अलग किस्म की आभासी-दुनिया केवल सच का 'सपोर्ट' पाकर 'कोठा' फाश की किस्सागोई हो गयी ।

     


जैसा कि अमूमन 'कोठा' में होते होंगे..... न तो यहाँ कोई सवर्ण बनकर आता है, न ही दलित, पर यहाँ जो आता है, वह कथित सवर्ण और कथित दलित तो रहते ही हैं, परंतु यहाँ आते ही लग जाते हैं.... मासूम-जिस्म को चूमने, रगड़ने और सृष्टि की रचना को 'कंडोम' से अवरोध दिलाकर ईश्वरीय-दुनिया को आगे बढ़ने से रोकने के लिए उनमें कुछ क्षण के लिए ऐसे समाहित हो जाते हैं, जैसे- बड़मूड़ा-ट्रायंगल की जादुई-सन्नाटा ।

"कोठागोई" में 12  किस्से हैं, 12 राशियों जैसे अटे पड़े ! यादों के ऐतिहासिक- अगवाड़े से ठोकाई-भर्त्सता से पिछवाड़े की गुदगुदाई को लपटे प्रतिबद्ध लेखक की वास्तविक-कल्पना को सहेजे रिसर्च !
जिसतरह से देवी के दर्शन के लिए लोग मंदिर जाते हैं, भजन सुनने को भटके हुए लोग इस ज़माने के सनी लियॉन की 'बेबी डॉल' गाने पर थिरकते नज़र आते हैं या कामुक-थिरकन एतदर्थ पाते हैं ।

कथा-किस्से शुरू होती हैं........
"सुरों की सात गलियाँ औ' अदब का एक चौराहा" से होते हुए 700 साल प्राचीन तुर्की के 4 भुजाओं वाले भगवान् की मूर्ति से होते हुए 'गुमनामी बाबा' की पोल खोलते-ढोल बजाते हुए "संगीत-भजन-गजल-मुजरा-ऑर्केष्ट्रा" से गुजरते-गुजरते रंग बदला, ढंग बदला, चोला बदला, खोल बदला ; लेकिन महफ़िल की संगीत जब चलती है तो पहुँचती थी -- जानकीवल्लभ शास्त्री के कुटी तक..... शास्त्री जी की कविता भी इनसे झंकृत है । फिर बढ़ते हैं आगे -- "जीवन सफ़र ने हमको भरमा के रख दिया" कि "चंपा-चमेलियों ने शरमा के रख दिया" ।

हमारे भी आदरणीय और 'कोठागोई' के लेखक श्रीमान प्रभात रंजन के गुरूजी कविवर जानकी वल्लभ शास्त्री जी के प्रसंगश: यहां वे उनकी स्मृति को स्मरणार्थ आलोड़ित करते हैं । वे अपने कक्षा गुरूजी के माध्यम से 'देवदास' के लेखक को चतुर्भुज स्थान घुमाते हुए 'न' की ओर ले जाते हैं और बातों-बातों में कहलवा देते हैं ! आखिर क्या था, मुजफ्फपुर कि इन कथित बदनाम-गलियों में जहाँ बड़े-बड़े कद्रदान आते थे और पागल हो जाते थे । द्रष्टव्य:-

"कितना याद रखा जाये ?
क्या-क्या याद रखा जाये ?
चलती गाड़ी उड़ती धूल--
बुरी नजर वाले तेरा डैमफूल ।"

किस्साकार अपने बचपने में भी जाते हैं । पन्ना बाई से रूबरू होते हुए पहले पी.एम. का बाई पर मंत्र-मुग्ध होना कुछ यूं दर्शाता है .....

"हीरा बेकार है, सोना बेकार है,
देश को तो अपने जवाहर से प्यार है,
सब मिलकर साथ रहे,
मकसदों की और बढ़े,
घाटियां बहुत है मगर-
सामने पहाड़ है ,
कंधे पर जिसके हिमालय का भार है,
देश को तो अपने जवाहर से प्यार है ।"

कहानी बढ़ती जाती है, दर्शक बढ़ते जाते हैं.... 'पन्ना' की जगह 'छोटी पन्ना' भर जाती है, हवाओं का रुख बदलता है संगीत की जगह मुजरे आ जाते हैं ।लटके-झटके शुरू होते हैं । 'छोटी पन्ना' नेपाल की वादियों में फ़ैल जाती है, संगीत उड़ जाता है ...पन्ने पलटते हैं.... समय कुर्बान होते हैं... 'छोटी-पन्ना' 'चतुर्भुज स्थान' पर फटे 'पन्ना' वाले इतिहास पर एक नई पन्नी लिख रही होती है ।

यूं ही बढ़ती है कहानियां । बनते हैं 'हिंदी-साहित्य' की जगह 'संगीत-यात्रा' की महफ़िल !
गौहर मियां कागजी पन्नों में आते हैं और किस्सों में कहानियां बन जाते हैं । गायिकी बढ़ती चली जाती है और उस्ताद याद हो आते हैं ...कोठा का तो पता नहीं, पर 'गोई' चल पड़ती है । कभी लखनऊ, कभी बनारस, तो कभी  'बरबरना' भोज खाते हुए 'पुनः मूषक: भवः' मुज़फ़्फ़रपुर आ जाती है ! द्रष्टव्य:-

"दुनिया चार दिनों का फेरा,
महफ़िल-महफ़िल खेला,
शोहरत,इज्जत,दौलत पीछे-
आगे चला अकेला ।"

पृष्ठ पलटते जायेंगे और 'इमरजेंसी' ब्रेक भी लगते जायेंगे ! घर-घर जाकर 'संगीत-मुज़रा-ग़ज़ल' का महफ़िल ख़त्म होते जायेंगे । तबलों की थापों की जगह 'घुँघरुओं' का छनकना आते जायेंगे । पर जब साथ आई 'सरला' के किस्से, तो पढ़ने-पढ़ाने की बानगी यूँ बनती जायेंगी.....

"पढ़ कर आगे जाना है,
अपना दाग मिटाना ह,ै
रोक  नहीं पाएंगे अब कोई-
आया नया जमाना है"

कि तभी युग-जमाने के साथ थिरकन बदले, सरला "रिवाल्वर रानी" की शिकार हो गयी । फिर आई कल्याणी की बढ़तगी, वो भी बेनजीर की 'झोड़' में चतुर्भुज स्थान की 'रसरसियन' तरकारी बन गयी ।

रस की बात आई और चंदा न हो तो महफ़िल जमने की बात दूर होते सुना कि वो 'गिनीज बुक' में आते-आते रह गयी । उनकी डांस और डांस में आवाज देने की 'माइक टेस्टिंग' "DUAL MEANING" लिए हाथ खड़ा कर गया । अब तो गायिकी बारों में होने लगा, संगीत 'नितम्ब' मटकाने के स्टेप हो गए "ग़ज़ल-ठुमरी-वाला" चतुर्भुज स्थान गुम हो गया और मेरे दोस्तों द्वारा बतायी "सच्चाई" अंततः प्रासंगिक हो गयी ।

मनोरमा से मानव-मन 'दूसरी दुनिया' में रमा गयी ....पढ़ते-पढ़ते मैं "ऑर्केष्ट्रा" के यादों में खो गया,जो अभी तक चल रहा है । खुलेआम नहीं, घुलेआम- लाइसेंस के रूप में ....कार्तिक पूजा के शुरूआत से चतुर्भुज स्थान अब "सोनपुर" मेले में रिमझिम , गुलाब, विकास, शोभा  इत्यादि 'थियेटर' की दुनिया  के रूप में ।

नाम पर कहानी रची गयी, पर 'नाम में क्या रखा' है ! ऐसा लगा 'गोई' को छोड़ दूँ तो किस्से, किस्सों जैसे लगे, पर वहीं हिंदी के साथ थोड़ी "मैथिली,बज्जिका, भोजपुरी और ज़रा अंगिका आ जाती, तो पढ़ने वाले और धन्य हो जाते ! कुलमिलाकर रचना इतिहास और कल्पना-मिश्रित इतिवृंत है ।

-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
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5 comments:

  1. विभा रानी श्रीवास्तवJanuary 20, 2017

    आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 21 जनवरी 2017 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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    Replies
      Reply
  2. UnknownJanuary 22, 2017

    अच्छी समीक्षा...... लिखी हैं आपने
    http://savanxxx.blogspot.in

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    Replies
      Reply
  3. विकास नैनवाल 'अंजान'June 28, 2018

    यह किताब मेरे tbr (to be read) लिस्ट में है। जल्द ही पढ़ता हूँ।

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    Replies
      Reply
  4. Gay Indians LawrenceNovember 08, 2024

    Lovelly blog you have

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      Reply
  5. Japanese Escorts WarrenNovember 18, 2024

    Hi great reaading your blog

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