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3.01.2014

''कड़ी 1 : "बरबादी बनाम पलभर"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     01 March     कविता     No comments   

आज से पढ़ते है ...विश्वफूल की कविताओं की हर सप्ताह एक कड़ी ...आइये पढ़े...

"बरबादी बनाम पलभर"

नीड़ बनायी हूँ / अपनी चोंच से,
टहनियों के छोटे-छोटे टुकड़े कर,
तृण-पात / चुन-चुनकर ।
लगी है, बड़ी मेहनत और काफी वक्त,
इस नीड़ के निर्माण में ।
....और तूफ़ान को सब पता,
जो केवल उजाड़ना ही जानता !
××             ××            ××
बनने में समय लगा मुझे,
बरस-दस बरस 
बरबाद होने के लिए / फ़ख़त
पलभर ही काफी है ।
××             ××             ××
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