साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया हैं, लेकिन युवा साहित्यकार साहित्य के काफ़ी वर्जनाओं को तोड़ते हुए नई साहित्य और साहित्यकार को जन्म दे रहे हैं । जब मैं चार वर्ष का था, तो मेरी पहली लघुकथा संग्रह आई, जिनमें हंस के संपादक और कथाकार स्व. राजेन्द्र यादव जी ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मेरे बारे में तब कहा था कि 'बचपना सिर्फ सोने के लिए नहीं, बल्कि कुछ करने के लिए भी होते हैं, जैसे तुम !' जो कि उस समय मैं कर रहा था । वह यादें अब ओझल तो लगती हैं, लेकिन जब भी वे बातें मुझे याद आती हैं, अपने आप पर गर्व जरूर होता है । प्रत्येक माह की भाँति जारी माह भी मैसेंजर ऑफ आर्ट के इनबॉक्स इंटरव्यू की प्रस्तुत कड़ी में हम, अपने प्यारे पाठकगण को जिस शख़्सियत से रूबरू व मिलाने जा रहे हैं, वह सुंदर तो है ही, किन्तु उनकी आवाज और प्रस्तुति का अदा भी सुंदर है !
जब बात एक व्यवस्थित-आवाज पर आई है, तो तयशुदा सच है कि उनकी आवाज में एक कशिश तो है, लेकिन कोशिश भी है । उनमें हिंदी के प्रति जिद तो है ही, हिंदी साहित्य में नवतरंग लिए रससिद्ध और उनकी सिद्धि को देश-दुनिया में सुनाने की भी जिद है ! वे यूट्यूब (You Tube) पर हिंदी साहित्य के अनकहीं और अनसुनी दास्तानों को इस कदर सुनाती हैं, रचनाओं से परिचित कराती हैं, तो ऐसा लगता है कि 'वाचन' की कोई मशीन चल रही हैं छन-छनन ! किताबों की इतनी सुंदर समीक्षा और इन समीक्षाओं की इतनी सुंदर प्रस्तुति करती हुई दृष्टि में आती हैं कि पाठक उस किताब को पाने की और पढ़ने की बेचैनी में कई बार कभी उनकी यूट्यूब चैनल पर,कभी किताबों की समीक्षा पर, तो कभी उनकी आवाज की मधुरता देखने-सुनने यूँ स्निग्धीय प्रविष्ट कर जाते हैं, मानों कोई कड़क चाय हो या मसाला चाय ! हाँ, उनकी यूट्यूब चैनल का नाम भी है-- 'मसाला चाय' (Masala Chai) और हम बात कर रहे हैं, आवाज की मल्लिका सुश्री सुदीप्ता सिन्हा जी की ! उन्होंने यूट्यूब चैनल मसाला चाय की शुरुआत एक ऐसे गाँव से की, जहाँ अच्छी किताबों की पहुँच टेढ़ी बातें तो जरूर हैं। उन्हें समझने, परखने और जानने से पहले आइये, सर्वप्रथम हम उनकी पृष्ठभूमि पर संक्षिप्तश: नजर डालते हैं......
वे बनारस के एक छोटे से ग्रामीण क्षेत्र रामनगर की रहने वाली है। उनकी स्कूली पढ़ाई रामनगर के नज़दीकी सरकारी स्कूल से हुई । स्नातक की पढ़ाई उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय यानी BHU से पूरी की । प्राचीन इतिहास व पुरातत्वशास्त्र में स्नातक प्रतिष्ठा के बाद उन्होंने इसी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता व जनसंचार में डिप्लोमा किया । रेडियो में रुचि होने के कारण रेडियो जॉकी बनने का ख्वाब देखा और सफल भी रही । ग्वालियर और आगरा के कुछ FM चैनल्स में बतौर रेडियो जॉकी और कॉपी राइटर की कार्य 3 से 4 वर्ष तक की । मगर धीरे धीरे इस फील्ड का ग्लैमर उन्हें अजीब लगने लगी, इसे वे अपेक्षणीय रूप देना चाहती है। वे जीवन से और भी 'अपेक्षा' चाहती थी । कहानियां पढ़ना चाहती थी, किताबों की बातें करना चाहती थी, लोगों को हिन्दी साहित्य की खूबसूरती दिखाना चाहती थी । एक दिन उन्होंने जॉब छोड़ दी, क्योंकि उन्हें थोड़े दिनों में ही खालिस मनोरंजन से ऊबकाई आने लगी थी । इसके इतर वे कुछ काम की बातें करना चाहती थी और अपनी आवाज़ लोगों तक पहुँचाना चाहती थी । अंततः, उन्होंने मन की आवाज़ सुनी । खाली वक़्त में घर पर बैठकर किताबें पढ़ने के दौरान गूगल और यूट्यूब पर अच्छी हिंदी किताबें ढूंढना शुरू कर दिए ! वे अपनी छोटी सी लाइब्रेरी को बढ़ाना चाहती थी, पर उन्हें वहाँ पर्याप्त जानकारी नहीं मिली। उन्होंने यह सोची कि युवा आज हिंदी से इतने दूर क्यों होते जा रहें हैं ? हिंदी क़िताबों की दुनिया में प्रवेश करना उन्हें क्यों रुचिकर नहीं लगता ?
इन सब प्रसंगों और कृत कारकों पर जवाब उन्हें धीरे-धीरे मिलने लगा और इस तरह उन्होंने स्टार्ट कर ही ली ! तो हमारे पाठकगण 'मसाला चाय' यूट्यूब चैनल को देखना न भूलेंगे ! हाँ, पक्का वादा !!!!!
और आज हम इन्हीं से रू-ब-रू होने जा रहे हैं, 14-गझिन सवालों के साथ ! तो आइए, उनसे 14 सुलझे जवाबों के साथ उन्हें और भी जानते हैं.....
1.)आपके कार्यों को यूट्यूब के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आइडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:-
अपने चैनल Masala Chai के माध्यम से मैं युवाओं को हिन्दी भाषा पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहती हूँ । वो लोग जो किताबों के शौकीन तो है, मगर जानकारी के अभाव में सिर्फ अंग्रेज़ी किताबें पढ़ना ही बुद्धिजीवी वर्ग की निशानी समझते हैं, उन तक हिंदी किताबों की पहुंच बनाना चाहती हूँ। साथ ही मेरे जैसे हज़ारों लोग जो हिंदी किताबों में रुचि रखते हैं, मगर उन्हें यह बताने वाला कोई नहीं होता कि कौन-सी किताब कैसी है और इसे क्यों पढ़ें ? Masala Chai उन सबके लिए एक ऐसी जगह है, जहां वैसे किताबों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, उन पर खुलकर चर्चा कर सकते हैं और अपनी लिखी किताबों को यूट्यूब के ज़रिए विश्व भर में पहुँचा सकते हैं।
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखती हूँ। मेरे परिवार में किताबें पढ़ना सिर्फ मनोरंजन का साधन ही माना जाता था। मगर सच तो यह है कि साहित्य और किताबें हमेशा हमें बेहतर इंसान बनाते हैं। वो हममें रचनात्मकता, समझदारी और जीवन के प्रति एक विस्तृत नज़रिया पैदा करते हैं। मैं बचपन से ही किताबों की शौकीन थी । सारे बच्चे खेलते रहते, पर मैं धीरे से खिसक कर निकल आती और किसी किताब में सिर गड़ा कर बैठ जाती ! जैसे -जैसे बड़ी होती गयी, हिंदी साहित्य और किताबों के प्रति मेरी दीवानगी बढ़ती ही गयी। फिर वह समय भी आया जब लोगों ने मुझे सलाह देना शुरू किया कि पढ़ना ही है तो अंग्रेज़ी किताबें पढ़ो, हिंदी में क्या रखा है ? उनकी यह सलाह मैं मुस्कुरा कर सुन लेती थी। मगर हिंदी के प्रति मेरी लगाव ज़रा भी कम नहीं हुई। धीरे -धीरे मैंने यह समझना शुरू किया कि हिंदी को सिर्फ हिंदी होने की वजह से ही लोग नहीं पढ़ते। वो इस अमूल्य साहित्य की महत्ता इसकी आवश्यकता और अपनी भाषा के प्रति किसी भी तरह के गौरव के एहसास से कोसों दूर होते जा रहे हैं । रेडियो की जॉब छोड़ने के बाद मैंने गहराई से इस विषय पर सोचना शुरू की । घर वालों से इस बारे में बात की तो उन्होंने कोशिश कर देख लेने को कहा और मेरी इस कोशिश में मेरा पूरा साथ भी दिया। उनके सहयोग से ही आज Masala Chai को हिंदी पाठकों और लेखक समूहों के बीच पहुँचा पा रही हूं व इस सफर को आगे बढ़ा रही हूँ।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:-
एक अच्छा साहित्य और एक अच्छी किताब किसी भी इंसान का जीवन बदल सकने की क्षमता रखती है। दुनिया के ज़्यादातर महान शख्सियतों में किताबें पढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाती है। इतिहास गवाह है कि बढ़िया किताबों ने हमेशा एक आम इंसान को खास बनाया है। इस दृष्टि से मेरा यूट्यूब चैनल Masala Chai हर व्यक्ति चाहे वो आम हो या खास के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक होगा।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:-
मेरा यह चैनल जो हिंदी किताबों को समर्पित है, अपने तरह का एक बिल्कुल अलग प्रयास है यूट्यूब पर। इनकी शुरुआत मैंने खुद अकेले ही की है और अब भी 'वन मैन आर्मी' की तरह चैनल का सारा काम अकेले ही करती हूँ। रुकावटों की बात करूं, तो सबसे पहली मुश्किल वीडियो एडिटिंग का काम खुद से सीखने की आयी। क्योंकि मेरे छोटे से इलाके में जहां मैं रहती हूं, मुझे एडिटिंग सिखाने वाला कोई भी नहीं मिला। कई बार क़िताबों के ना मिल पाने की स्थिति में उन्हें ढूढ़ने के लिए पूरे बनारस के चक्कर लगाना पड़ जाता है, किताबों को ध्यान से पूरा पढ़ना, स्क्रिप्ट लिखना, शूट भी खुद करना और एडिटिंग भी , इन सब कामों में बहुत वक़्त लग जाता है और जल्दी -जल्दी वीडियो पोस्ट नहीं कर पाती हूँ। मगर कहते हैं, जहाँ चाह, वहां राह ! इसलिए ये सब कुछ खास बड़ी मुश्किलें नहीं रह जाती !
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:-
मैंने अपनी सेविंग्स से ही यह काम शुरू किया था । सेविंग्स सिर्फ पैसों की ही नहीं, किताबों की भी कर रखी थी, इसलिए अब तक ऐसी कोई बड़ी दिक्कत नहीं आई ।अगर लोग इस चैनल को इसी तरह पसन्द करते रहे, तो मुझे उम्मीद है कि आगे भी ऐसी मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली ?
उ:-
मैंने पहले भी बताया कि किताबों के प्रति मेरी दीवानगी बचपन से ही रही। मैं अपने जन्मदिन पर भी कभी खिलौने नहीं लेती थी, मुझे किताबें ही चाहिए होती थी। मैं रेडियो में अपना भविष्य ज़रूर तलाश रही थी, पर मैंने यह महसूस किया कि लोग किताबों से दूर होते जा रहे हैं, खास तौर से हिंदी साहित्य से । जीवन के प्रति हमेशा असंतुष्ट रहना, चीज़ों को देखने के लिए नया नज़रिया विकसित ही न कर पाना, भेद-भाव और ऊंच-नीच में जीवन का उत्थान व पतन समझना, ऐसी मानसिकता से मुक्ति न सिर्फ व्यक्ति विशेष के लिए बल्कि समाज और पूरे देश के विकास के लिए बेहद ज़रूरी है और इस कार्य में हमारा साहित्य व किताबें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यही वजह है कि मैंने यह क्षेत्र चुना। मेरा परिवार मेरे कार्य से पूरी तरह संतुष्ट है और यथासम्भव मेरी पूरी मदद भी करता है।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:-
अभी तक तो कोई भी नहीं ! हाँ, कुछ दोस्तों और शुभचिंतकों से कई बार अमूल्य राय व सलाह जरूर मिल जाती है, जो मेरे बहुत काम आती है।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:-
भारतीय साहित्य के बिना भारतीय संस्कृति के रूप की कल्पना अधूरी प्रतीत होती है। हमारी मातृभाषा हिंदी और हिंदी में लिखी गयी व लिखी जा रहीं किताबें हमारी संस्कृति को हमेशा आगे ही बढ़ाएंगी।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
अगर किसी विद्वान का कहा यह कथन सत्य है कि 'अच्छी किताबें हमेशा इंसान को बेहतर बनाती हैं' तो इस कथन से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि एक बेहतर इंसान भ्रष्ट विचारों को त्यागने और भ्रष्टाचार मुक्त समाज के निर्माण में निरंतर प्रयासरत रहता है। लोग अगर साहित्य और किताबों से रिश्ता कायम कर ले व इनकी सीख को जीवन में उतारना शुरू कर दें, तो निश्चय ही बेहतर समाज का निर्माण होगा।
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:-
मेरे वीडियो देख कर अपना अनमोल सुझाव व सलाह देकर मेरे कुछ दोस्तों व शुभचिंतकों ने मेरी पर्याप्त मदद की है। उनके कीमती समय से बड़ा सहयोग और क्या होगा ?
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:- नहीं, ऐसा कुछ नहीं हुआ।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:- जी, नहीं।
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
अभी तो मैंने एक शुरुआत भर की है, फिलहाल लोगों का प्रोत्साहन, प्रशंसा व उनका प्रेम ही मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान है।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
मैं बनारस से थोड़ी दूरी पर स्थित रामनगर की रहने वाली हूं और यहीं अपने घर से अपना काम कर रही हूँ।
मैं अपने देशवासियों से बस यही कहना चाहतीं हूँ कि हिंदी किताबों को एक बार फिर से अपने जीवन में जगह दें, साहित्य जहां आपको एक बेहतर इंसान बनाने के साथ ही एक खूबसूरत दुनिया से आपको रूबरू कराएगा, वहीं पढ़ने और लिखने में अपनी मातृभाषा हिंदी का प्रयोग हमारे समाज के व राष्ट्र की उन्नति में सहायक होगा !
जब बात एक व्यवस्थित-आवाज पर आई है, तो तयशुदा सच है कि उनकी आवाज में एक कशिश तो है, लेकिन कोशिश भी है । उनमें हिंदी के प्रति जिद तो है ही, हिंदी साहित्य में नवतरंग लिए रससिद्ध और उनकी सिद्धि को देश-दुनिया में सुनाने की भी जिद है ! वे यूट्यूब (You Tube) पर हिंदी साहित्य के अनकहीं और अनसुनी दास्तानों को इस कदर सुनाती हैं, रचनाओं से परिचित कराती हैं, तो ऐसा लगता है कि 'वाचन' की कोई मशीन चल रही हैं छन-छनन ! किताबों की इतनी सुंदर समीक्षा और इन समीक्षाओं की इतनी सुंदर प्रस्तुति करती हुई दृष्टि में आती हैं कि पाठक उस किताब को पाने की और पढ़ने की बेचैनी में कई बार कभी उनकी यूट्यूब चैनल पर,कभी किताबों की समीक्षा पर, तो कभी उनकी आवाज की मधुरता देखने-सुनने यूँ स्निग्धीय प्रविष्ट कर जाते हैं, मानों कोई कड़क चाय हो या मसाला चाय ! हाँ, उनकी यूट्यूब चैनल का नाम भी है-- 'मसाला चाय' (Masala Chai) और हम बात कर रहे हैं, आवाज की मल्लिका सुश्री सुदीप्ता सिन्हा जी की ! उन्होंने यूट्यूब चैनल मसाला चाय की शुरुआत एक ऐसे गाँव से की, जहाँ अच्छी किताबों की पहुँच टेढ़ी बातें तो जरूर हैं। उन्हें समझने, परखने और जानने से पहले आइये, सर्वप्रथम हम उनकी पृष्ठभूमि पर संक्षिप्तश: नजर डालते हैं......
वे बनारस के एक छोटे से ग्रामीण क्षेत्र रामनगर की रहने वाली है। उनकी स्कूली पढ़ाई रामनगर के नज़दीकी सरकारी स्कूल से हुई । स्नातक की पढ़ाई उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय यानी BHU से पूरी की । प्राचीन इतिहास व पुरातत्वशास्त्र में स्नातक प्रतिष्ठा के बाद उन्होंने इसी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता व जनसंचार में डिप्लोमा किया । रेडियो में रुचि होने के कारण रेडियो जॉकी बनने का ख्वाब देखा और सफल भी रही । ग्वालियर और आगरा के कुछ FM चैनल्स में बतौर रेडियो जॉकी और कॉपी राइटर की कार्य 3 से 4 वर्ष तक की । मगर धीरे धीरे इस फील्ड का ग्लैमर उन्हें अजीब लगने लगी, इसे वे अपेक्षणीय रूप देना चाहती है। वे जीवन से और भी 'अपेक्षा' चाहती थी । कहानियां पढ़ना चाहती थी, किताबों की बातें करना चाहती थी, लोगों को हिन्दी साहित्य की खूबसूरती दिखाना चाहती थी । एक दिन उन्होंने जॉब छोड़ दी, क्योंकि उन्हें थोड़े दिनों में ही खालिस मनोरंजन से ऊबकाई आने लगी थी । इसके इतर वे कुछ काम की बातें करना चाहती थी और अपनी आवाज़ लोगों तक पहुँचाना चाहती थी । अंततः, उन्होंने मन की आवाज़ सुनी । खाली वक़्त में घर पर बैठकर किताबें पढ़ने के दौरान गूगल और यूट्यूब पर अच्छी हिंदी किताबें ढूंढना शुरू कर दिए ! वे अपनी छोटी सी लाइब्रेरी को बढ़ाना चाहती थी, पर उन्हें वहाँ पर्याप्त जानकारी नहीं मिली। उन्होंने यह सोची कि युवा आज हिंदी से इतने दूर क्यों होते जा रहें हैं ? हिंदी क़िताबों की दुनिया में प्रवेश करना उन्हें क्यों रुचिकर नहीं लगता ?
इन सब प्रसंगों और कृत कारकों पर जवाब उन्हें धीरे-धीरे मिलने लगा और इस तरह उन्होंने स्टार्ट कर ही ली ! तो हमारे पाठकगण 'मसाला चाय' यूट्यूब चैनल को देखना न भूलेंगे ! हाँ, पक्का वादा !!!!!
सुश्री सुदीप्ता सिन्हा |
और आज हम इन्हीं से रू-ब-रू होने जा रहे हैं, 14-गझिन सवालों के साथ ! तो आइए, उनसे 14 सुलझे जवाबों के साथ उन्हें और भी जानते हैं.....
उ:-
अपने चैनल Masala Chai के माध्यम से मैं युवाओं को हिन्दी भाषा पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहती हूँ । वो लोग जो किताबों के शौकीन तो है, मगर जानकारी के अभाव में सिर्फ अंग्रेज़ी किताबें पढ़ना ही बुद्धिजीवी वर्ग की निशानी समझते हैं, उन तक हिंदी किताबों की पहुंच बनाना चाहती हूँ। साथ ही मेरे जैसे हज़ारों लोग जो हिंदी किताबों में रुचि रखते हैं, मगर उन्हें यह बताने वाला कोई नहीं होता कि कौन-सी किताब कैसी है और इसे क्यों पढ़ें ? Masala Chai उन सबके लिए एक ऐसी जगह है, जहां वैसे किताबों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, उन पर खुलकर चर्चा कर सकते हैं और अपनी लिखी किताबों को यूट्यूब के ज़रिए विश्व भर में पहुँचा सकते हैं।
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
माँ के साथ |
उ:-
मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखती हूँ। मेरे परिवार में किताबें पढ़ना सिर्फ मनोरंजन का साधन ही माना जाता था। मगर सच तो यह है कि साहित्य और किताबें हमेशा हमें बेहतर इंसान बनाते हैं। वो हममें रचनात्मकता, समझदारी और जीवन के प्रति एक विस्तृत नज़रिया पैदा करते हैं। मैं बचपन से ही किताबों की शौकीन थी । सारे बच्चे खेलते रहते, पर मैं धीरे से खिसक कर निकल आती और किसी किताब में सिर गड़ा कर बैठ जाती ! जैसे -जैसे बड़ी होती गयी, हिंदी साहित्य और किताबों के प्रति मेरी दीवानगी बढ़ती ही गयी। फिर वह समय भी आया जब लोगों ने मुझे सलाह देना शुरू किया कि पढ़ना ही है तो अंग्रेज़ी किताबें पढ़ो, हिंदी में क्या रखा है ? उनकी यह सलाह मैं मुस्कुरा कर सुन लेती थी। मगर हिंदी के प्रति मेरी लगाव ज़रा भी कम नहीं हुई। धीरे -धीरे मैंने यह समझना शुरू किया कि हिंदी को सिर्फ हिंदी होने की वजह से ही लोग नहीं पढ़ते। वो इस अमूल्य साहित्य की महत्ता इसकी आवश्यकता और अपनी भाषा के प्रति किसी भी तरह के गौरव के एहसास से कोसों दूर होते जा रहे हैं । रेडियो की जॉब छोड़ने के बाद मैंने गहराई से इस विषय पर सोचना शुरू की । घर वालों से इस बारे में बात की तो उन्होंने कोशिश कर देख लेने को कहा और मेरी इस कोशिश में मेरा पूरा साथ भी दिया। उनके सहयोग से ही आज Masala Chai को हिंदी पाठकों और लेखक समूहों के बीच पहुँचा पा रही हूं व इस सफर को आगे बढ़ा रही हूँ।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:-
एक अच्छा साहित्य और एक अच्छी किताब किसी भी इंसान का जीवन बदल सकने की क्षमता रखती है। दुनिया के ज़्यादातर महान शख्सियतों में किताबें पढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाती है। इतिहास गवाह है कि बढ़िया किताबों ने हमेशा एक आम इंसान को खास बनाया है। इस दृष्टि से मेरा यूट्यूब चैनल Masala Chai हर व्यक्ति चाहे वो आम हो या खास के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक होगा।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं
उ:-
मेरा यह चैनल जो हिंदी किताबों को समर्पित है, अपने तरह का एक बिल्कुल अलग प्रयास है यूट्यूब पर। इनकी शुरुआत मैंने खुद अकेले ही की है और अब भी 'वन मैन आर्मी' की तरह चैनल का सारा काम अकेले ही करती हूँ। रुकावटों की बात करूं, तो सबसे पहली मुश्किल वीडियो एडिटिंग का काम खुद से सीखने की आयी। क्योंकि मेरे छोटे से इलाके में जहां मैं रहती हूं, मुझे एडिटिंग सिखाने वाला कोई भी नहीं मिला। कई बार क़िताबों के ना मिल पाने की स्थिति में उन्हें ढूढ़ने के लिए पूरे बनारस के चक्कर लगाना पड़ जाता है, किताबों को ध्यान से पूरा पढ़ना, स्क्रिप्ट लिखना, शूट भी खुद करना और एडिटिंग भी , इन सब कामों में बहुत वक़्त लग जाता है और जल्दी -जल्दी वीडियो पोस्ट नहीं कर पाती हूँ। मगर कहते हैं, जहाँ चाह, वहां राह ! इसलिए ये सब कुछ खास बड़ी मुश्किलें नहीं रह जाती !
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:-
मैंने अपनी सेविंग्स से ही यह काम शुरू किया था । सेविंग्स सिर्फ पैसों की ही नहीं, किताबों की भी कर रखी थी, इसलिए अब तक ऐसी कोई बड़ी दिक्कत नहीं आई ।अगर लोग इस चैनल को इसी तरह पसन्द करते रहे, तो मुझे उम्मीद है कि आगे भी ऐसी मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली ?
पिताजी के साथ |
उ:-
मैंने पहले भी बताया कि किताबों के प्रति मेरी दीवानगी बचपन से ही रही। मैं अपने जन्मदिन पर भी कभी खिलौने नहीं लेती थी, मुझे किताबें ही चाहिए होती थी। मैं रेडियो में अपना भविष्य ज़रूर तलाश रही थी, पर मैंने यह महसूस किया कि लोग किताबों से दूर होते जा रहे हैं, खास तौर से हिंदी साहित्य से । जीवन के प्रति हमेशा असंतुष्ट रहना, चीज़ों को देखने के लिए नया नज़रिया विकसित ही न कर पाना, भेद-भाव और ऊंच-नीच में जीवन का उत्थान व पतन समझना, ऐसी मानसिकता से मुक्ति न सिर्फ व्यक्ति विशेष के लिए बल्कि समाज और पूरे देश के विकास के लिए बेहद ज़रूरी है और इस कार्य में हमारा साहित्य व किताबें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यही वजह है कि मैंने यह क्षेत्र चुना। मेरा परिवार मेरे कार्य से पूरी तरह संतुष्ट है और यथासम्भव मेरी पूरी मदद भी करता है।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:-
अभी तक तो कोई भी नहीं ! हाँ, कुछ दोस्तों और शुभचिंतकों से कई बार अमूल्य राय व सलाह जरूर मिल जाती है, जो मेरे बहुत काम आती है।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:-
भारतीय साहित्य के बिना भारतीय संस्कृति के रूप की कल्पना अधूरी प्रतीत होती है। हमारी मातृभाषा हिंदी और हिंदी में लिखी गयी व लिखी जा रहीं किताबें हमारी संस्कृति को हमेशा आगे ही बढ़ाएंगी।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
अगर किसी विद्वान का कहा यह कथन सत्य है कि 'अच्छी किताबें हमेशा इंसान को बेहतर बनाती हैं' तो इस कथन से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि एक बेहतर इंसान भ्रष्ट विचारों को त्यागने और भ्रष्टाचार मुक्त समाज के निर्माण में निरंतर प्रयासरत रहता है। लोग अगर साहित्य और किताबों से रिश्ता कायम कर ले व इनकी सीख को जीवन में उतारना शुरू कर दें, तो निश्चय ही बेहतर समाज का निर्माण होगा।
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:-
मेरे वीडियो देख कर अपना अनमोल सुझाव व सलाह देकर मेरे कुछ दोस्तों व शुभचिंतकों ने मेरी पर्याप्त मदद की है। उनके कीमती समय से बड़ा सहयोग और क्या होगा ?
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:- नहीं, ऐसा कुछ नहीं हुआ।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:- जी, नहीं।
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
अभी तो मैंने एक शुरुआत भर की है, फिलहाल लोगों का प्रोत्साहन, प्रशंसा व उनका प्रेम ही मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान है।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
मैं बनारस से थोड़ी दूरी पर स्थित रामनगर की रहने वाली हूं और यहीं अपने घर से अपना काम कर रही हूँ।
मैं अपने देशवासियों से बस यही कहना चाहतीं हूँ कि हिंदी किताबों को एक बार फिर से अपने जीवन में जगह दें, साहित्य जहां आपको एक बेहतर इंसान बनाने के साथ ही एक खूबसूरत दुनिया से आपको रूबरू कराएगा, वहीं पढ़ने और लिखने में अपनी मातृभाषा हिंदी का प्रयोग हमारे समाज के व राष्ट्र की उन्नति में सहायक होगा !
"आप यूं ही हँसती रहें, मुस्कराती रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
नमस्कार दोस्तों !
मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com
Ji ha..... messenger of art ne thik farmaya......sudipta k videos ko dekh kr un books ko padhne ki lalsa badh jati h.......bahut badhiya r umada
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ReplyDeleteYou deserve it . M super fan of masala chai .keep it up
ReplyDeleteBat krne or smjhane ka tarika.khulkr bebak bolne ka tarika bhut pasand aata hai. Or sch m aawaj bhut bhut pyari hai.
ReplyDeleteYes its grt jod sudipta ji....u r superb..nd talented...keep it up...with lots of love....
ReplyDeleteIshwar se prarthna h ki tum yun hi apne sapno ko haqiqat me badlne ki koshish krti raho. Tumhari ye koshish rang zaroor layegi aur vo yuva varg jo hindi sahitya ki amulya nidhi ki upekcha kr rha h uska mahtwa zaroor samjhega... baki tumhe dher sara pyar aur shubhkamnayein
ReplyDeleteवाकई यह एक बड़ी उपलब्धि है सुदीप्ता के लिये और आपकी मैसेंजर ऑफ आर्ट की सोच और कार्यशैली सराहनीय है।
ReplyDelete-मुरली मनोहर श्रीवास्तव, लेखक सह पत्रकार, पटना
आप सभी को हार्दिक धन्यवाद ��
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया ऐसे शख्शियत का साक्षात्कार प्रकाशित करने के लिए जो कुछ अलग करने का जज़्बा रखती है। इससे हमें एक सकारात्मक प्रेरणा मिलती है। आज का युवा जहा साहित्य से कोषों दूर है वही सुदीपता जी का यह काम काफी सराहनीय है, इनके वीडिओज़ से न केवल हमे किताबों के बारे में पता चलता है बल्कि एक प्रेरणा भी मिलती है अपने हिंदी साहित्य से जुड़ने की।
ReplyDeleteधन्यवाद !
Deleteवाकई जिस तरह से इन्होंने हिंदी साहित्य की बारे में बताया और खास कर मुंशी प्रेमचंद के पुस्तकों और उनके गांव लमही के जिस नजर से दिखाया उससे तो मानो में मुंशी प्रेम चंद की हर किताबों का पढ़ने का मन हो गया बहुत बढ़िया ऐसे ही रोज आप हमें हिंदी साहित्य की नई नई पुस्तकों से रूबरू कराओ|
ReplyDeleteतुम्हें यहां देखकर बहुत ही खुशी हो रही है जिस तरह तुमने बिना किसी सहारे के यहाँ तक का रास्ता तय कर लिया वो कबीले तारीफ है तुम्हारी ऊंचाइयां यूँ ही बढ़ती रहे, अपने विचारो को स्वतंत्रता के साथ अभिव्यक्त करने का माध्यम हिंदी भाषा को चुनकर तुमने एक उदाहरण उन सभी के लिए प्रस्तुत किया है जो हिन्दी भाषा को थोड़ा कमतर आंकते हैं यूँ ही बुलंदियों को छूती रहो यही कामना है 💞
ReplyDeleteतुम्हें यहां देखकर बहुत ही खुशी हो रही है जिस तरह तुमने बिना किसी सहारे के यहाँ तक का रास्ता तय कर लिया वो कबीले तारीफ है तुम्हारी ऊंचाइयां यूँ ही बढ़ती रहे, अपने विचारो को स्वतंत्रता के साथ अभिव्यक्त करने का माध्यम हिंदी भाषा को चुनकर तुमने एक उदाहरण उन सभी के लिए प्रस्तुत किया है जो हिन्दी भाषा को थोड़ा कमतर आंकते हैं यूँ ही बुलंदियों को छूती रहो यही कामना है 💞
ReplyDeleteसवाल-जवाब शानदार लगा। ये भी अच्छा प्लेटफार्म है, लोगो के उत्साहवर्धन का। बेहतरीन
ReplyDeleteशुक्रिया !
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