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5.03.2019

''वकीलों के भी 'फीस' हो निर्धारित''

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     03 May     फेसबुक डायरी     No comments   

बदलाव होनी चाहिए, नहीं तो प्रकृति की अनमोल कृति मानव भी पशु की तरह ही व्यवहार करने लग जायेंगे। आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते एक नई व टटकी आलेख...

जनसाधारण से लेकर वीआईपी तक SDO कोर्ट से लेकर सर्वोच्च न्यायालय में न्याय की आश में पहुँचते हैं,जहाँ रसूखदार लोग तो मेरिटवाले-वकील को उच्च फीस चुकताकर उसे अपने पैरवी के लिए नियुक्त कर लेते हैं । परंतु कानूनी-जानकारी नहीं होने के कारण साधारण लोग शीघ्र न्याय पाने की लालसा में ऐसे वकील के फीस तभी भर पाते हैं, जब जमीन या घर या औरतों के गहने गिरवी रखते हैं या बेचते हैं । इसपर भी केस जीत ही जाएंगे, ऐसी कोई गारंटी नहीं रहती ! हालाँकि गरीब-मुवक्किल के लिए संविधान ने उनके लिए मुफ़्त वकील की व्यवस्था किया है, किन्तु ऐसे पैरवीकार-अधिवक्ता की कानूनी जानकारी अल्प ही रहती है । एक RTI यूजर ने विविध कोर्टों के वकीलों के फीस-निर्धारण को लेकर 'बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया' को पत्र लिखा, किन्तु फाइनल-जवाब अबतक पेंडिंग है । भारत के विधि मंत्री रहे राम जेठमलानी भी एक बहस के लिए ₹5 लाख से ऊपर लेते हैं, तो दूजे की बात करना ही बेमानी है।

(फ़ोटो :-- साभार गूगल । )

-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
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