भारत में नारियों की पूजा की जाती है, लेकिन यह पूजा नारी (देवी) की प्रतिमा (मूर्ति) की होती है, जो निर्जीव है । भारत की जीवित नारी अपने भाई के लिए भैयादूज मनाती हैं, पति के लिए तीज और करवा चौथ, बेटे के लिए जिऊतिया करती हैं , किन्तु हम बहन, पत्नी, बेटी जैसी सजीव नारी के लिए ये पुरुष किसी प्रकार के पूजा नहीं करते हैं । बोलिये, चित्रगुप्त महाराज ! आपके शास्त्र में ऐसे कोई पर्व का नाम है, जो जीवित नारी के लिए हो !..तो क्यों न हम अपने भाइयों से आग्रह करें कि वे अब से 'बहनदूज' मनाएं ?
-- मेरी 'दीदी'
केवल भाई व भैयाओं के लंबी उम्र के लिए क्यों हो कोई पर्व ...? बहनों के लिए भाइयों द्वारा कहाँ होती है कोई पर्व-त्योहार ! क्या बहनें (sisters) इंसान नहीं हैं, तो क्यों न अबकी बार से ...
#NO_भैया_दूज
#ONLY_बहन_दूज_REVOLUTION
#BAHAN_दूज की हार्दिक शुभकामनायें।
आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में पढ़ते हैं, 'बहन दूज़' की अवधारणा कैसे की गई ?
क्यों सिर्फ़ मर्दों व पुरुषों के लिए ही सब पर्व-त्योहार होते हैं ? पुरुष लोगों ने ही पुरुषवादी पौराणिक कहानियों को एतदर्थ हथियार बनाया और अपने कथित पौरुषता का अखंड परिचय देते हुए रक्षा-बंधन के बाद बहनों को पुनः किसी पौराणिक कहानी के सहारे 'पुरुष मानसिकता' में पिरोकर 'भाई दूज़' मानने, मनाने व मनवाने को बेबस कर डाले, पढ़िए.....
पृथ्वी से 149.6 million km दूर है भगवान सूर्य, जो कि किसी और विशाल आकाशगंगा की आगवानी करते गत्यात्मक स्थिति में है, किन्तु हमारे सौर परिवार में बिल्कुल ही स्थिर प्रतीति लिए है, परंतु पृथ्वी के ऊपरी आवरण धरती से हम उसे सूर्योदय से सूर्यास्त की ओर कदम बढ़ाते व चलते देखते हैं ! यह आभासी लिए है ।
हिन्दू सनातनी-विन्यासानुसार अथवा ग्रांथिक मान्यतानुसार सूर्यदेव भी परिवार से जुड़े हैं, जिनका भी प्रतीक रूप में मानावाकार (धरती पर के सर्वोत्कृष्ट योनि) प्रविष्टि लिए है । हाँ, ऐसे ही कथा व कथ्यानुसार सूर्यदेव की धर्मपत्नी का नाम 'छाया' है, तो कोई 'संज्ञा' कहते हैं । हो सकता है, ये दो नाम उनकी दो पत्नियों के हों ! हो सकता है, ये दोनों नाम एक ही देवी की हों, जिनके एक निक नाम हो ।
-- मेरी 'दीदी'
केवल भाई व भैयाओं के लंबी उम्र के लिए क्यों हो कोई पर्व ...? बहनों के लिए भाइयों द्वारा कहाँ होती है कोई पर्व-त्योहार ! क्या बहनें (sisters) इंसान नहीं हैं, तो क्यों न अबकी बार से ...
#NO_भैया_दूज
#ONLY_बहन_दूज_REVOLUTION
#BAHAN_दूज की हार्दिक शुभकामनायें।
आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में पढ़ते हैं, 'बहन दूज़' की अवधारणा कैसे की गई ?
क्यों सिर्फ़ मर्दों व पुरुषों के लिए ही सब पर्व-त्योहार होते हैं ? पुरुष लोगों ने ही पुरुषवादी पौराणिक कहानियों को एतदर्थ हथियार बनाया और अपने कथित पौरुषता का अखंड परिचय देते हुए रक्षा-बंधन के बाद बहनों को पुनः किसी पौराणिक कहानी के सहारे 'पुरुष मानसिकता' में पिरोकर 'भाई दूज़' मानने, मनाने व मनवाने को बेबस कर डाले, पढ़िए.....
पृथ्वी से 149.6 million km दूर है भगवान सूर्य, जो कि किसी और विशाल आकाशगंगा की आगवानी करते गत्यात्मक स्थिति में है, किन्तु हमारे सौर परिवार में बिल्कुल ही स्थिर प्रतीति लिए है, परंतु पृथ्वी के ऊपरी आवरण धरती से हम उसे सूर्योदय से सूर्यास्त की ओर कदम बढ़ाते व चलते देखते हैं ! यह आभासी लिए है ।
हिन्दू सनातनी-विन्यासानुसार अथवा ग्रांथिक मान्यतानुसार सूर्यदेव भी परिवार से जुड़े हैं, जिनका भी प्रतीक रूप में मानावाकार (धरती पर के सर्वोत्कृष्ट योनि) प्रविष्टि लिए है । हाँ, ऐसे ही कथा व कथ्यानुसार सूर्यदेव की धर्मपत्नी का नाम 'छाया' है, तो कोई 'संज्ञा' कहते हैं । हो सकता है, ये दो नाम उनकी दो पत्नियों के हों ! हो सकता है, ये दोनों नाम एक ही देवी की हों, जिनके एक निक नाम हो ।
वैज्ञानिक सोच तो यह है कि सूर्य हमेशा ही प्रकाशित हैं, बावजूद पौराणिक श्रुतियों के अनुसार जहाँ सूर्यास्त के बाद आई अंधकार व छाया देवी सूर्यदेव की पत्नी है, इन्हीं छाया की कोख से यमराज नामक पुत्र तथा यमउणा नामक पुत्री ने जन्म लिये । बात भले ही तर्कों से 'सत्याल्प' भी सिंचित न हो कि 'जिस सूर्य में इतनी तेज व आग हों, तो उनके निकट कोई कैसे रह सकती है !'....तो बच्चों की बात तो दूर है ! यह विचारणीय प्रश्न है ?
यमराज और यमउणा में कौन बड़े हैं, यह सुस्पष्ट नहीं है । परंतु यमउणा भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती रही हैं ! वर्त्तमान में क्या स्थिति है, यह सिर्फ़ कयास लगाए सकते हैं ! कालांतर में यमउणा 'यमुना' नदी कहलायी, तो यमराज 'मृत्यु' के देवता के रूप में संज्ञार्थ हैं । कथ्य है, यमुना नदी अपने भाई यमराज को हमेशा कहती रहती-- 'वह उनके घर आया करें ', लेकिन ईमानदारी से वशीभूत हो कार्यों में नेकव्यस्त, वह बहन की कही बातों पर कभी भी खरा नहीं उतर सका ! किन्तु कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन बहन यमुना को भाई यमराज की याद आयी और इस तिथि को नहीं आने पर भाई से कभी भी न बोलने की कसमें खा बैठी । ईमानदार यमराज को हर कार्य स्थगित करते हुए बहन यमुना के द्वारे आना पड़ा । कहा जाता है, विक्रमी संवत के कार्तिक शुक्ल द्वितीया को प्रत्येक साल बहन के घर भाई आते हैं और तब एक-दूसरे के प्रति दुलार-पुचकार होता है । ऐसे में यहाँ 'बहन दूज़' होने की परंपरा जुटती है, किन्तु पुरुषवादी समाज अपनी जिद को आगे रखते हुए 'भैयादूज़' की नींव रख डालते हैं !
धरती पर भारत सरकार ने 'भगवानी कैलेंडर' के अनुसार 'इंसानी कैलेंडर' तैयार कराते हुए छुट्टियां 'डिक्लेअर' की । यम को भी अवकाश मिला। यम 'गिफ्ट' (उपहार) के साथ बहन से मिलने उनके घर पहुंचा, उसका गिफ्ट तो काफी शानदार था, उसने नरक में निवास करने वाले सभी को स्वर्ग का टिकट दे नरकमुक्त कर दिया ।
कहा जाता है, तब से धरतीवासी अपने मृतक संबंधियों को स्वर्गीय व स्वर्गवासी कहते हैं, नरकवासी नहीं ! इस भाई-बहनों के इस प्रथम 'दूज़' (मिलन व द्वितीया) में भाई यम को देख बहन यमुना फूली न समाई और अतिउत्साही यम ने बहन से वर माँगने यानी गिफ्ट मांगने को कहा ।यमुना गिफ्ट के रूप में भाई से भौतिक सुख न माँगकर, प्रति वर्ष इसी दिन घर आने का वचन मांगी और कहा कि इस दिन कोई भाई बहन की व एक-दूसरे का आदर-सत्कार करें, तो उससे मृत्यु उनके नजदीक न आ पावेंगे ! किन्तु किसी की मृत्यु के बाद यमुना नदी किनारे अंतिम संस्कार भी बहन से मिलाने की परंपरा को आज भी जीवंतता दिए है ! परंतु क्या यह 'दूज ' भाइयों की लंबी उम्र के लिए है, तो यमराज नामक भाई ही तो खुद मृत्यु देव हैं, उन्हें लंबी उम्र की क्या आवश्यकता ? उसने तो धरतीवासियों को मोहरा बना कर यम खुद अपनी उम्र को 'अमर' कर लंबी उम्र सँजो लिया !
चूँकि यह कहानी एक बहन के अभियान से शुरू होती है, इसलिए यह 'भैया दूज' नहीं; वरन इस चैप्टर को निश्चितश: 'बहन दूज' कहा जाना चाहिए !
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक।
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