प्रकृति के सुकुमार कवि पंत जी जैसे गंभीरता और अज्ञेय जी जैसे विरागी की वैराग्य लिए अस्तित्व-प्रस्फुटन के साथ आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में पढ़ते है सुश्री मनीषा गुप्ता की बेहद भावुक काव्य-मल्हार ! आइये, हम इसे पढ़ते हैं.....................
■नम्र निवेदन...
नित्य संवेदनाओ से घिरी
अस्तित्वहीन, अपूर्ण
परिलक्षित-सी मैं ...!
■आह...
प्यार के सारगर्भित रहस्य को छुपा
निश्चेतन, निष्प्राण-सी शिलाखंड
न भावनाओ का आरोह,
न जज़्बातों का कोई अवरोह ...!
न जज़्बातों का कोई अवरोह ...!
■मानो...
जिंदगी की ग़ज़ल में
तार सप्तक के स्वर
राग मल्हार गाने की कोशिश
पर मन रूपी वीणा के
अव्यवस्थित से तार ...!
अव्यवस्थित से तार ...!
■विस्मित
न स्वर, न ताल, न वाद्य
फिर क्यों गुनगुनाने चली
जिंदगी के बेसुरे गीत को ...!
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDelete