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12.17.2017

"स्लो मोशन से बढ़ते हुए कविता स्वमेव बारूद तक पहुंच जाती है"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     17 December     कविता     No comments   

'बैरागी जी' बहुत मज़ेदार कवि हैं, तो इनकी कविता बड़ी मज़ेदार होगी ही । अगर हम हैशटैग होते, तो इस कवि की हर कविता के शीर्षक के साथ उपसर्ग की भाँति लगा देते ! इनकी कविताएं कई-कई भावों को समेटे हैं, क्योंकि स्लो मोशन में चलकर ये कविताएं सीधे बारूद बन जाती हैं । ...पढ़कर शायद आपको धूमिल की याद आ जाए, अरुण कमल, अशोक वाजपेयी याद आ जाये ! सम्प्रति कवि हमेशा से ब्रज व बृज के मोहन हैं, रासलीला करनेवाले, किन्तु स्वामी भी है और वैरागी भी ! जो हो, आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में पढ़ते है कवि बृजमोहन स्वामी 'बैरागी' के वैराग्य-मन से उपजे तो हैं, परंतु लीक से बिल्कुल हटी हुई है, प्रस्तुत कविता ! इस कविता में निराशा है, किन्तु शीघ्र ही फिर नैराश्य-स्थिति से उबरकर अंजाम बारूद तक ले चले जाते हैं । कविता के नामकरण में कवि का अपना मत है, रस है ।तो आइए, चखते हैं कविताओं से निःसृत मीठे रस को............



ऐश्वर्या राय का कमरा

चला जाता हूँ / उस सड़क पर
जहां लिखा होता है-
आगे जाना मना है।
मुझे खुद के अंदर घुटन होती है ।

मैं
समझता हूँ लूई पाश्चर को,
जिसने बताया की
करोड़ों बैक्टिरिया हमें अंदर ही अंदर खाते हैं
पर वो लाभदायक निकलते है
इसलिए वो मेरी घुटन के जिम्मेदार नही हैं
कुछ और ही है
जो मुझे खाता है /चबा-चबा कर ।
आपको भी खाता होगा कभी
शायद नींद में / जागते हुए 

या
रोटी को तड़पते झुग्गी-झोंपड़ियों के बच्चों को 
निहारती आपकी आँखों को
धूप 
नहीं आयगी उस दिन
दीवारें गिर चुकी होंगी
या काली हो जाएँगी
आपके बालों की तरह
आप उन पर गार्नियर या कोई महंगा शम्पू नही रगड़ पाओगे
आपकी वो काली हुई दीवार ।

इंसान के अन्य ग्रह पर रहने के सपने को 
और भी ज्यादा / आसान कर देगी
अगर आपको भी है पैर हिलाने की आदत,
तो हो जाएं सावधान,
सूरज कभी भी फट सकता है
दो रुपये के पटाखे की तरह
और चाँद हंसेगा उस पर
तब हम
गुनगुनाएंगे हिमेश रेशमिया का कोई नया गाना ।
तीन साल की उम्र तक आपका बच्चा नहीं चल रहा होगा तो...
आप कुछ करने की बजाए--
कोसेंगे बाइबिल और गीता को ।

तब तक
आपका बैडरूम बदल चुका होगा एक तहखाने में
आप कुछ नही कर पाओगे
आपकी तरह मेरा दिमाग या मेरा आलिंद-निलय का जोड़ा,
सैकड़ों वर्षों से कोशिश करता रहा है कि जब मृत्यु घटित होती है
तो शरीर से कोई चीज बाहर जाती है या न्हीं?
आपके शरीर पर कोई नुकीला पदार्थ खरोंचेगा..
और अगर धर्म; पदार्थ को पकड़ ले,
तो विज्ञान की फिर कोई भी जरूरत नहीं है।

मैं मानता हूँ कि
हम सब बौने होते जा रहे है / कल तक हम सिकुड़ जायेंगे
तब दीवार पर लटकी
आइंस्टीन की एक अंगुली हम पर हंसेगी ।

और आप सोचते होंगे कि

मैं कहाँ जाऊंगा ?
मैं सपना लूंगा एक लंबा सा
उसमेंकोई "वास्को डी गामा" फिर से / कलकत्ता क़ी छाती पर कदम
रखेगा और आवाज़ सुनकर मैं उठ खड़ा हो जाऊंगा
एक भूखा बच्चा,
वियतनाम की खून से सनी गली में /अपनी माँ को खोज लेता है
उस वक़्त ऐश्वर्या राय अपने कमरे (मंगल ग्रह वाला) में सो रही है
और दुबई वाला उसका फ्लैट खाली पड़ा है।
मेरे घर में चीनी खत्म हो गयी है..
मुझे उधार लानी होगी..
इसलिये बाक़ी कविता कभी नही लिख पाउँगा ।

(हालांकि आपका सोचना गलत है और वो वाली ऐश्वर्या राय नहीं है !)

😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘


ओम पुरी जिन्दा है !


सुनो !

भूले बिसरे किस्सों में क्यों डूबे हो ?

समंदर किनारे नर्म, ठंडी रेत पर

बैठे हुए सूरज को निहारना जरा ...!
और फ़िर यूँ देखो मुझे

जैसे किसी हॉलीवुड फिल्म को बूढ़े लोग देखते हैं।

आओ न, मेरे कदमों के पीछे

इस दुनिया की उथल-पुथल से दूर, बहुत दूर और...!

बस बहुत दूर चलें

इंसानो की करोड़ों नस्लो को पार करके

खाली पड़े मेरे आँगन में आओ...!

मुझसे

छीन लो कई सुकून भरे नगमे...!
जैसे एक फौजी की पत्नी,

डाकिये से छीन लेती है सब पत्र

एक बच्चे का दो सो सीढियां पैदल चढ़कर जाना

और उन्हीं सीढ़ियों पर बैठकर रोना, बिल्कुल तुम्हारी रुठने की आदत जैसा लचीला है
मेरे करीब आने का कोई प्रश्न हो

तो क्या उत्तर दिया जाए ?

मेरी नज़रों से देखना आता है

इधर देखो सब ठीक है,

बस एक भूखा कुत्ता चिल्ला रहा है

उसको रोटी खिला दो,

मेरा गला चूमकर

यही ईश्वर है तुम्हारा

(क्या तब भी, जब सर फटा जा रहा हो ?)

रोज़ कई लोग मरते हैं

बेमौत और बे-वक़्त

तुमने देखा आज टीवी ?

दिखना भी कम हो गया हो

कान तो लगभग बहरे हो गए हों, मस्तिष्क की सोचने की आदत खत्म हो गई हो,

वो तुम्हारा नारंगी दुपट्टा लेकर बाहर चली जाओ

सुकून से सोचो

तुम अभी जिन्दा हो जान
किसी बात को श्रृंगारदान में बिंदियों पर छुपा दो
या फिर सच बता दो

तुम वक़्त और घटना को धोखा नही दे पाओगी
सुनने वाला अफ़सोस करेगा...!

मुझे याद है चार साल पहले एक तीन साल की बच्ची होती थी


उसको
"कैसी हो" पूछने पर ?

वह सच बोल जाती थी ।

सुनो

लोगों की भीड़ को चीरकर

और यादों की सूजन बढ़ जाये तो

सीधे मेरे रोशनदान में झांक लेना

वहां से मेरा दिल और मेरा टीवी दिख जाता है

ओम पूरी जिन्दा है...

पर कई लोगों भावनाएं मर चुकी हैं।

(मेरी नज़रों में )


नमस्कार दोस्तों ! 


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