'सूई' अत्यल्प वस्तु है, किन्तु महत्वपूर्ण वस्तु है, तो वास्तु भी ! जो काम तलवार नहीं कर सकते, वो सूई कर देते हैं । वास्तविकता छोड़ अगर हम कुछ देर के लिए कल्पनाजीवी बन जाए, तो सूई हमें क्या-क्या सिखाती है, स्मरण में स्पर्शित होना शुरू हो जाएंगे ? वो कभी यादों को ज़िंदा कर देती है, तो कभी अनचाहे को चाहना से मिला देती है और कभी अनचाही व अनछुई फिल्में बना डालती हैं । आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में पढ़िए कवयित्री प्रेमलता ठाकुर की 'सूई' पर अद्भुत कविता । आइये, इसे पढ़ते हैं.............
सूई
कवयित्री प्रेमलता ठाकुर |
सूई
सूई ,
सिर्फ छेद करना
मकसद नहीं उसका,
वह टाँकती है ,चाँद-सितारों को,
पगड़ी-साफ़ा-शेरवानी में ।
सभ्यता के आईने में,
संवारती औकात,
देती एक नई पहचान,
कतरनों को जोड़ती,
कामनाओं के धागे से,
एक कथरी सिलती,
ताकि थके तन-मन को विश्राम मिल जाये ।
वह निर्माण करती है, बड़े हिजाब से,
रच देती बेहिसाब परिधानें,
जीवन के आवश्यकता के अनुरूप,
मनुष्यता के आवरण है गढ़ती ।
आत्मविश्वास के पथपर,
बड़ी हसरत से,
उमंगो के रँगबिरंगे धागों से,
मौसम के कमनीय फूलों को चुन-चुन,
जीवन के चादर में टाँक दिया क़रतीं
खूबसूरत लम्हों की याद में ।
हौसलों की क़रती फुलकारी,
मनसूबे के पंखों की तुरपाई,
अरमानो को देती उड़ान भरने का हौसला,
बेवजह कुछ भी नहीं होता,
क्योंकि उड़ान भरने के लिए,
जरूरी होता है, उन सुइयों में
मन की फूलों सी खिलती रहना ।
नमस्कार दोस्तों !
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