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9.01.2017

"मेहमान की बेटी"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     01 September     लघुकथा     No comments   

बाबू मोशाय ...! ज़िन्दगी लंबी नहीं, बड़ी होनी चाहिए लेकिन ज़िन्दगीनामा में कुछ बातें ऐसी भी घटित हो जाती हैं, जो कहानियाँ बन आती है ! आज पढ़ते है -- कुछ ऐसी ही , आइये पढ़े -- प्रधान प्रशासी सह संपादक ।


आज घर आये मेहमान ने बातों ही बातों में  मेरे पापा से अपनी बेटी के लिए  रिश्ता खोजने को कहा । इसके लिए पापा ने उनकी बेटी का क्वालिफिकेशन पूछ लिया, किन्तु अपनी बेटी के बारे में बताते वक़्त उनका जवाब ने मेरे चेहरे पर हँसी ला दिया -- आप पहले लड़का तो ढूँढ़िये, लड़की चिकनी, मलाईवाली और एक नंबर माल वाली देंगे , मेरी बेटी एक नंबर माल है ---- । मुझे पहले लगा, माल से मतलब दहेज़ का जिक्र कर रहे होंगे , परंतु उनके विचार ने मेरे अंदर उनके प्रति घृणा का शैलाब ला दिया कि छि: .... कोई पिता अपनी बेटी  के बारे में ऐसी घृणित विज्ञापन कैसे कर सकता है ? यानी जिनके पास  साँवली और काली बेटी है, तो उनपर शामत आयी, क्या !!!
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