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11.26.2016

इनसे मिलिए : मेरा रंग ALIAS शालिनी श्रीनेत

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     26 November     इनबॉक्स इंटरव्यू     1 comment   

इनसे मिलिए : मेरा रंग ALIAS शालिनी श्रीनेत 

दोस्तों !
वेब मैगज़ीन MESSENGER OF ART (www.messengerofart.in) पर हर महीने कम से कम '1' अज्ञात व्यक्तियों से, जिन्होंने विविध क्षेत्रों में ज्ञात कार्यों की तन-मन-धन से सेवा की है और वर्तमानत: कर रहे हैं, उनसे आपको परिचित कराने के अभिनव प्रयास का जो मैंने वादा किया है या प्रतिबद्धता जतायी है, उनमें प्रथमत: वैसी मर्दानी कार्यक्रमसेनानी को शामिल किया है, जिसने 'मेरा रंग दे बासंती चोला' में बासंती चोला को त्याज्य करती हुई एक कार्यक्रम "मेरा रंग" तैयार की, जो अनवरत् इसी नाम से जारी है..... वो मर्दानी कार्यक्रमसेनानी हैं-- 'शालिनी श्रीनेत' -- इस मैगज़ीन की 'रिसर्च टीम' को सुश्री शालिनी श्रीनेत ने काफी प्रभावित की ।
आपके 'कार्य' MESSENGER OF ART  (www.messengerofart.in) में प्रकाशनार्थ नामित हुई है ।
आप अपने कार्यक्षेत्र और स्वयं से सम्बंधित MESSENGER OF ART के 14 गझिन सवालों को जिसभाँति से मात्र 8 घंटे में जवाब दी, स्वयं में आपकी कार्यक्षमता को बोधित करती है । लीजिये, प्रस्तुत वेब मैगज़ीन में  आपके इंटरव्यू  प्रसारित , संग्रहित और इतिहासवृंत हो चुकी है । यहां बता दूँ, श्रीमती शालिनी के पत्रकार पति श्री दिनेश श्रीनेत भी "मेरा रंग" के अनन्य सहयोगी हैं, बावजूद "मेरा रंग" के लिए सभी इंटरव्यू वे खुद लेती हैं । इसके साथ ही श्रीमती शालिनी एक ममतामयी माँ भी हैं । इस मर्दानी कार्यक्रमसेनानी से कोई भी फेसबुक अथवा मैसेंजर के माध्यम से  विस्तृत विवरणार्थ जानकारी ले सकते हैं ! अब होइए, MESSENGER OF ART के 14 सवालों से रू-ब-रू :-


श्रीमती शालिनी श्रीनेत के 14 बेबाक उत्तरों से रू-ब-रू:--


प्र.(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र  के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को  सुस्पष्ट कीजिये ? 


उ:-  जो महिलाएं और लड़कियां समाज में किसी भी तरह का बदलाव लाने का प्रयास कर रही हैं, चाहे सोशल मीडिया के जरिए, चाहे लेखन के जरिए , चाहे सामाजिक कार्यों के जरिए या फिर राजनीति के माध्यम से, उन्हें हम  मेरा रंग  के मंच पर आमंत्रित करते हैं और संबंधित मुद्दों पर विस्तार से बातचीत करते हैं। मेरा यह मानना है कि मीडिया स्त्रियों से जुड़े किसी भी मुद्दे पर गहराई से बातचीत नहीं करती, जबकि हम उन स्त्रियों (कभी-कभी पुरुषों को भी) को बुलाते हैं और उन मुद्दों को चिह्नित करते हैं - जिन पर वो लिखती हैं और कहीं न कहीं उससे प्रताड़ित और प्रभावित भी हैं।  उन्हें अपनी बात कहने का मौका देते हैं। मेरा यह भी मानना है कि सिर्फ लिख देना और कहीं छप जाना आसान है क्योंकि उस पर कोई प्रति-प्रश्न नहीं होता, जबकि बातचीत या ऑनलाइन इंटरव्यू के दौरान उनके लिखे हुए पर तमाम सवाल किए जाते हैं जिसका वो जवाब देते हैं, जो कि मुश्किल है, आसान नहीं।   


प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?


उ:-  मैं मिली-जुली सामाजिक पृष्ठभूमि से हूं। सफर देवरिया के एक गांव से शुरु हुआ और फिर अपने पत्रकार पति के साथ तमाम शहरों - जैसे गोरखपुर, इलाहाबाद, बरेली, लखनऊ, बैंगलौर, कानपुर से होते हुए अब दिल्ली में हूं। बचपन में अपने प्रधान पिता नारायण सिंह के साथ रहकर मैंने बहुत करीब से उनकी सामाजिक गतिविधियों को देखा और उससे प्रभावित भी हुई। वे किसी की मदद करने के लिए हर समय तत्पर रहते थे, चाहे दिन हो या रात, धूप हो या बारिश। दूसरी तरफ मैं अपने बड़े भाई एलएस सिंह से भी प्रभावित थी, जिन्होंने कड़ी मेहनत के बाद एयरफोर्स ज्वाइन किया। वे बेहद उदार व खुली सोच के थे। इंटर तक मैं गांव में पढ़ी। उसके बाद मेरी शादी हो गई। मेरी सास ने ही मुझे आगे पढ़ाया और मैंने गोरखपुर    यूनीवर्सिटी से ग्रेजुएशन और रुहेलखंड विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। इसके बाद लगातार दो स्वयंसेवी संगठनों से जुड़ी रही। इसके बाद कुछ समय तक अपना बिजनेस भी किया। तमाम शहरों में रहने के दौरान मैं वहां के स्थानीय लोगों के साथ घुलमिलकर वहां की भाषा और रीति-रिवाज को समझती थी और उनके रंग-ढंग में ढल जाती थी, जैसे बैंगलोर में घर के सामने रंगोली बनाना और बालों में गजरे लगाना। लगभग हर शहर में मेरे ऐसे बहुत सारे दोस्त हैं जिनसे आज भी हमारी बातचीत होती रहती है। होश संभालने से लेकर अभी तक जो भी मिला वह मेरे बारे में यह जरूर कहता था - बहुत मिलनसार है, सबकी मदद करती है। कहीं न कहीं ये बातें दिमाग में घर कर गई थीं। सो लगातार यह चलता रहा कि मैं कोई सोशल वर्क करूं, जहां पर किसी की किसी भी तरह से मदद कर सकूं। मेरी मां (सास) भी मुझे लगतार इसके लिए प्रोत्साहित करती रहती थीं। आज जो भी हूं, उनके योगदान की वजह से ही हू्ं। 


प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा  लाभान्वित हो सकते हैं ?


उ:- मेरे इस कार्यक्रम में ऐसे मुद्दों पर बातें होती हैं जिससे आम आदमी अपने को जोड़ सकता है। मैं इस कार्यक्रम के जरिए महिलाओं से जुड़े तमाम मुद्दों को उठा रही हूं - जैसे  वर्किंग गर्ल्स, छोड़े कपड़े, पीरियड्स, सांवलापन, लड़के-लड़कियों की परवरिश, एलजीबीटी, रेप, एसिड अटैक आदि। जाहिर सी बात जब इन मुद्दों पर विस्तार से चर्चा होती है तो लोग सोचने के लिए मजबूर होंगे। इसीलिए हमने सोशल मीडिया को चुना ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे देख सकें और अपने साथियों को बता सकें, इस पर बातचीत कर सकें। वैसे मेरा रंग की चर्चा युवा पीढ़ी में अच्छी-खासी है, वे खुद भी हमसे संपर्क कर रहे हैं और जिन मुद्दों पर बातचीत हो चुकी है उसे सराह रहे हैं। तो इस कार्यक्रम के जरिए एक तरफ युवाओं को खुलकर अपनी बात रखने का मौका मिल रहा है, वहीं जो लोग इसे देखते हैं वे भी कहीं न कहीं उन मुद्दों के प्रति जागरुक होते हैं।


प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?


उ:- मेरा यह कार्यक्रम नया है, अभी तक तो मुझे किसी बड़ी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा। छोटी-मोटी तकनीकी दिक्कतें आईं उसका समाधान हमने खुद ही निकाल लिया। कभी-कभी इंटरव्यू का शिड्यूल तय करने में परेशानी होती हैं मगर उसे हम दिक्कतों में नहीं गिनते। 
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये? 


उ:- इस कार्यक्रम को हम अपने दम पर कर रहे हैं। इसके लिए मुझे कहीं से आर्थिक सहयोग नहीं मिलता और हमने अभी तक कोई प्रयास भी नहीं किया। कभी-कभी कैमरे की दिक्कत होती है, क्योंकि हमें कहीं और से कैमरे का इंतजाम करना पड़ता है। हम यह चाह रहे हैं कि हमारा अपना कैमरा हो जाए। तब हम इस कार्यक्रम को और सुचारु रूप से कर सकेंगे।


प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !



उ:- यह क्षेत्र मैंने इसलिए चुना क्योंकि मुझे सामाजिक कार्य करना पसंद है। जहां तक परिवार का सवाल है, मेरा पूरा परिवार सहयोग कर रहा है, यहां तक कि बच्चे भी। मेरा बड़ा बेटा उद्भव - जो 12 साल का है - स्टूडियो तैयार करने में कभी-कभी मेरी मदद करता है। इसे शूट करने और एडिट करने का काम मेरे पति करते हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मेरे परिवार वाले भी मेरे काम में दिलचस्पी लेते हैं। 


प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !


उ:-  इस कार्य में मेरे घर वालों के साथ साथ मेरे मित्र भी सहयोग कर रहे हैं। वे न सिर्फ मेरा हर कार्यकम देख कर मेरी कमियां-खूबियां बताते हैं बल्कि समय-समय पर कई सुझाव भी देते हैं और लोगों को इस प्रोग्राम से जोड़ते भी हैं।

प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ?  इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?


उ:- मैं अपने प्रोग्राम के जरिए भारतीय संस्कृति की किसी तरह की अवहेलना नहीं करती पर भारतीय संस्कृति क्या है, लोगों से यह मेरा सवाल है। क्या पीरिड्स की बात करना, महिलाओं की आजादी की बात करना, एलजीबीटी पर चर्चा करना, बच्चों की परवरिश पर बात करना या रेप और एसिड अटैक के मुद्दे उठाना भारतीय संस्कृति के खिलाफ है? क्या संस्कृति का हवाला देकर इन संवेदनशील मुद्दों पर बातचीत करना बंद कर दें, तो हमारी संस्कृति को चोट नहीं पहुंचेगी? समाज में अलग-अलग लोग भारतीय संस्कृति की अलग-अलग परिभाषा बताते हैं, तो हमारी समझ में नहीं आता कि हम किस परिभाषा में फिट हों। वैसे इस प्रोग्राम के जरिए किसी भी संस्कृति का अपमान करना मेरा उद्देश्य नहीं है। 


प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !

उ:- जाहिर सी बात है हमारी सोच बदलेगी, समाज बदलेगा। महिलाएं सुरक्षित रहेंगी तो निडर होकर आत्मविश्वास के साथ कहीं भी किसी भी क्षेत्र में कार्य करने के लिए सक्षम रहेंगी। आधी आबादी महिलाओं से ही है तो हमें समझना चाहिए कि उनकी तरक्की के साथ समाज और राष्ट्र दोनों का विकास होगा।  


प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।


उ:-  इस कार्यक्रम के लिए अभी तक कोई आर्थिक सहयोग तो नहीं मिला, हां दोस्तों का सहयोग खूब मिल रहा है। 


प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी  धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?


उ:- मेरे कार्यक्षेत्र में एेसा कोई दोष या विसंगतियां या मुकदमे जैसी कोई परेशानी नहीं आई।


प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?


उ:- नहीं, अभी तक तो नहीं। मेरा यह कार्यक्रम फेसबुक पेज और यूट्यूब पर देखा जा सकता है। जल्दी ही हम एक वेबसाइट प्लान करेंगे। 

प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?

उ:- अभी यह कार्यक्रम शुरु हुए बहुत कम वक्त हुआ है, किसी संस्था से तो नहीं मगर दोस्तों से उनका सहयोग रूपी पुरस्कार और सम्मान भरपूर प्राप्त हुआ है।

प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ? 


उ:- हमारा यह कार्यक्रम दिल्ली-एनसीआर से संचालित होता है। इसके विस्तार हेतु आने वाले समय में हम तमाम और मुद्दे उठाएंगे और उन पर बातचीत करेंगे। हम इस कार्यक्रम के माध्यम से समाज और राष्ट्र को संदेश देना चाहेंगे कि अपनी सोच बदलिए, समाज बदलेगा। खुद को बदलिए, लोग अपने-आप बदलेंगे ।




"आप यूं ही हँसती रहें, मुस्कराती रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभमंगलकामनाएँ ।

'मैसेंजर ऑफ आर्ट' आपके, आपके तमाम सहयोगियों को और 'मेरा रंग' कार्यक्रम के दीर्घजीवन की कामना लिए भाविष्यिक असीम-शुभकामना प्रकट करता है ।  
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1 comment:

  1. AnonymousDecember 29, 2016

    Good interview,Share more interview.

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