"एक मित्र के नाम पत्र : आंबेडकर भगवान नहीं थे !" -- संपादक ।
आप कौन -सी केमिकल लोचे की बात कर रहे हो ? भारत के इतिहास को विदेशी आक्रांताओं ने बर्बाद किया ही, मुगलों और अंग्रेजों के समय भी भारतीय इतिहास की धज्जियाँ उड़ाई गयी । रही-सही कसर वामपंथी-दक्षिणपंथी इतिहासकार की आपसी मनभेद-मतभेद और सतभताराई लड़ाई ने पूरा कर दिए । इतिहास-लेखन झन्ट में पहुंचकर दरबारी और गणेश-परिक्रमा करनेवालों से लिखाया जा रहा है । मनुष्य बुद्धिजीवी प्राणी हैं, इस नाते केमिकल लोचे को दूर कर मैंने सोचा -- अन्वेषण का मार्ग अपनाये जाय । आपने वही कुछ लिखा है, जिसे इतिहासकार ने मनोनुकूलित लिख छोड़ा है, यही तो केमिकल लोचा है । आप उसे ही पढ़ रहे हैं । डॉ. आंबेडकर गरीब नहीं थे, यह आपने भी लिखा हैं । वे द्वितीय श्रेणी से प्रवेशिका (मैट्रिक) उत्तीर्ण थे, ये स्पष्ट है कि वे जन्मजात प्रतिभाशाली नहीं थे । किन्तु पढ़ने की अतिशय ललक ने उन्हें बड़ौदा महाराज की छात्रवृति दिलाये और उच्च शिक्षार्थ विलायत गए, गांधी जी भी गए थे ! जहां डॉ. आंबेडकर ने इकोनॉमिक्स बेस्ड शिक्षा ग्रहण किये, बाद में विधि शिक्षा भी । गांधी की विधि शिक्षा ने आजीविकोपार्जन के लिए द. अफ्रिका गए, तो डॉ. आंबेडकर ने भारत में ही अफसरी / क्लर्की संभाले । गांधी को वहाँ रंग के आधार पर अछूत समझा गया, तो डॉ. आंबेडकर को अपने ही देश में जाति के आधार पर ! यह अस्पृश्यता दोनों के लिए अवसाद ग्रंथि थी । गांधीजी के परिवार जैन धर्म से प्रभावित थे, बावजूद उनकी जाति (घाँची/तेली) की स्थिति भी बनिये समाज में अछूत की थी । उत्तर भारत के अश्वेत आदिवासी और द. भारत के द्रविड़ यहाँ के मूलनिवासी (चूँकि 'भारत' के नामकरण किन नाम और किनके आधारित है, यह भी शोध का विषय है) हो सकते हैं । अंग्रेजों से पहले मुगलों ने भी भारत को गुलाम रखा था । मुसलमानों और राजपूत-ब्राह्मणों के बीच विवाह सम्बन्ध भी हुआ, हो सकता है यह जबरन भी हुआ हो ! तुलसीदास ने उसी क्रम में शूद्र और नारी की दुःस्थिति भी लिखा । .... शूद्र की छोड़िये, ब्राह्मणी महिला भी आज कई मंदिरों में प्रवेश नहीं कर पाती हैं । अछूत व्यवहार अभिशाप है, परंतु तब देश को परतंत्रता से मुक्ति की जरूरत थी , जो तब परम आवश्यक था । उस क्रम में पूना पैक्ट का होना भारत को खंड कर पाकिस्तान बनाने जैसा था । आप बताएँगे, लोकसभा या राज्य विधान सभा में sc/st के सुरक्षित सीट से पिछड़े वर्गों को क्या फ़ायदा हुआ है ! आजादी के बाद प्रथम मंत्रीमंडल में पिछड़ों वर्गों को कौन से फायदे हुए ! आजादी के समय और आजादी के कुछ समय बाद भी आंबेडकर पर किसी दलित-पिछड़ा लेखक भी क्यों नहीं कुछ लिखा ! आखिरकार उन्हें भारत रत्न काफी वर्षों बाद क्यों दिए गए ? आंबेडकर भगवान् नहीं थे, गांधी भी भगवान् नहीं थे ! ....। और हाँ, उस समय के सबसे प्रतिभाशाली डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे , यही कारण है, उन्हें संविधान सभा का पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाया गया था । इस सभा में कई समितियां थी, इनमें एक प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. आंबेडकर थे , जिनमें कई सदस्य और सचिव थे । अगर अध्यक्ष सर्वेसर्वा हैं तो संविधान के जनक डॉ. राजेन्द्र प्रसाद हो सकते हैं, अन्यथा सभी के सामूहिक प्रयास से ही संविधान की रचना की गयी । सबसे अफसोसनाक की बात है, जिसने कुजाति व्यवस्था के लिए लड़ा और विधि-निर्माण में महती भूमिका अदा किया, वही आंबेडकर लोकसभा का चुनाव हार गए ।
आप कौन -सी केमिकल लोचे की बात कर रहे हो ? भारत के इतिहास को विदेशी आक्रांताओं ने बर्बाद किया ही, मुगलों और अंग्रेजों के समय भी भारतीय इतिहास की धज्जियाँ उड़ाई गयी । रही-सही कसर वामपंथी-दक्षिणपंथी इतिहासकार की आपसी मनभेद-मतभेद और सतभताराई लड़ाई ने पूरा कर दिए । इतिहास-लेखन झन्ट में पहुंचकर दरबारी और गणेश-परिक्रमा करनेवालों से लिखाया जा रहा है । मनुष्य बुद्धिजीवी प्राणी हैं, इस नाते केमिकल लोचे को दूर कर मैंने सोचा -- अन्वेषण का मार्ग अपनाये जाय । आपने वही कुछ लिखा है, जिसे इतिहासकार ने मनोनुकूलित लिख छोड़ा है, यही तो केमिकल लोचा है । आप उसे ही पढ़ रहे हैं । डॉ. आंबेडकर गरीब नहीं थे, यह आपने भी लिखा हैं । वे द्वितीय श्रेणी से प्रवेशिका (मैट्रिक) उत्तीर्ण थे, ये स्पष्ट है कि वे जन्मजात प्रतिभाशाली नहीं थे । किन्तु पढ़ने की अतिशय ललक ने उन्हें बड़ौदा महाराज की छात्रवृति दिलाये और उच्च शिक्षार्थ विलायत गए, गांधी जी भी गए थे ! जहां डॉ. आंबेडकर ने इकोनॉमिक्स बेस्ड शिक्षा ग्रहण किये, बाद में विधि शिक्षा भी । गांधी की विधि शिक्षा ने आजीविकोपार्जन के लिए द. अफ्रिका गए, तो डॉ. आंबेडकर ने भारत में ही अफसरी / क्लर्की संभाले । गांधी को वहाँ रंग के आधार पर अछूत समझा गया, तो डॉ. आंबेडकर को अपने ही देश में जाति के आधार पर ! यह अस्पृश्यता दोनों के लिए अवसाद ग्रंथि थी । गांधीजी के परिवार जैन धर्म से प्रभावित थे, बावजूद उनकी जाति (घाँची/तेली) की स्थिति भी बनिये समाज में अछूत की थी । उत्तर भारत के अश्वेत आदिवासी और द. भारत के द्रविड़ यहाँ के मूलनिवासी (चूँकि 'भारत' के नामकरण किन नाम और किनके आधारित है, यह भी शोध का विषय है) हो सकते हैं । अंग्रेजों से पहले मुगलों ने भी भारत को गुलाम रखा था । मुसलमानों और राजपूत-ब्राह्मणों के बीच विवाह सम्बन्ध भी हुआ, हो सकता है यह जबरन भी हुआ हो ! तुलसीदास ने उसी क्रम में शूद्र और नारी की दुःस्थिति भी लिखा । .... शूद्र की छोड़िये, ब्राह्मणी महिला भी आज कई मंदिरों में प्रवेश नहीं कर पाती हैं । अछूत व्यवहार अभिशाप है, परंतु तब देश को परतंत्रता से मुक्ति की जरूरत थी , जो तब परम आवश्यक था । उस क्रम में पूना पैक्ट का होना भारत को खंड कर पाकिस्तान बनाने जैसा था । आप बताएँगे, लोकसभा या राज्य विधान सभा में sc/st के सुरक्षित सीट से पिछड़े वर्गों को क्या फ़ायदा हुआ है ! आजादी के बाद प्रथम मंत्रीमंडल में पिछड़ों वर्गों को कौन से फायदे हुए ! आजादी के समय और आजादी के कुछ समय बाद भी आंबेडकर पर किसी दलित-पिछड़ा लेखक भी क्यों नहीं कुछ लिखा ! आखिरकार उन्हें भारत रत्न काफी वर्षों बाद क्यों दिए गए ? आंबेडकर भगवान् नहीं थे, गांधी भी भगवान् नहीं थे ! ....। और हाँ, उस समय के सबसे प्रतिभाशाली डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे , यही कारण है, उन्हें संविधान सभा का पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाया गया था । इस सभा में कई समितियां थी, इनमें एक प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. आंबेडकर थे , जिनमें कई सदस्य और सचिव थे । अगर अध्यक्ष सर्वेसर्वा हैं तो संविधान के जनक डॉ. राजेन्द्र प्रसाद हो सकते हैं, अन्यथा सभी के सामूहिक प्रयास से ही संविधान की रचना की गयी । सबसे अफसोसनाक की बात है, जिसने कुजाति व्यवस्था के लिए लड़ा और विधि-निर्माण में महती भूमिका अदा किया, वही आंबेडकर लोकसभा का चुनाव हार गए ।
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