जब भी उल्टी गिनती शुरू होती है, तो 'शून्य' (zero) का महत्व काफी बढ़ जाता है ! Blank Cheque में जब ₹1 के बाद शून्य को भरने कहा जाय, ... तो ...प्रिय मित्र पाठकों खुद समझ सकते हैं, यह किसी के ज़िन्दगी की कैसी भरपाई होगी, खुद समझ लीजिए कि वे क्या करेंगे ? बशर्तें बैंक में उतने रुपये हो ! खैर, शून्य की खोज भारत में हुई, यह निर्विवाद सच है, परंतु इसके खोजकर्त्ता को किसी अज्ञात भारतीय का नाम दिया जाता है, तथापि सम्प्रति कविता के कवि ने आर्यभट्ट को श्रेय दिया है । आर्यभट्ट या आर्यभट के जीवन और अन्य प्रसंग के बारे में अन्य किंवदंतियां हैं, तथापि बिहार के पटना के पास 'तारेगना' में उनके जन्म होने की आदर्श चर्चा सर्वाधिक सटीक है आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट लेकर आई है, कवि आलोक शर्मा की कविता "क्षमा करो, हे आर्यभट्ट ! कि हमको शर्म नहीं आती" !कविता में कवि ने आर्यभट्ट से इसलिए क्षमा माँगा है कि पूरी दुनिया इन्हीं की खोज व सूत्रों के इर्द-गिर्द है, बावजूद हम कई मामले में भ्रष्टाचार में आकंठ डूब कर भी कुछ न होने की वस्तुस्थिति को लिए निश्चिंततापूर्ण बैठे हैं !आइये, इसे हम पढ़ते हैं और लुत्फ़ उठाते हैं ----
जाति, वर्ग, धर्म-भाव में, वंशज यह तेरी बंट जाती ;
क्षमा करो, हे आर्यभट्ट !कि हमको शर्म नहीं आती !
सच है !पूरी दुनिया को तू शून्य का पहले ज्ञान दिया ;
पृथ्वी-परिधि परिक्रमा औ' तुमने 'पाइ' का मान दिया !
सूत्र दिया पूरे जग को, जो दुनिया कभी नहीं पाती ;
क्षमा करो, हे आर्यभट्ट ! कि हमको शर्म नहीं आती !
संसार ऋणी है आज तेरा, तेरे इस अद्भुत ज्ञान का ;
गणित-शास्त्र, ज्योतिष-विद्या और नक्षत्र-विज्ञान का !
आर्यभटीय अनुपम रचना,जो सर्वोत्तम है कहलाती ;
क्षमा करो, हे आर्यभट्ट ! कि हमको शर्म नहीं आती !
राष्ट्र नहीं तुम विश्व गुरु हो, इसका कुछ भी ध्यान नहीं ;
धर्म,जाति में उलझे हैं सब, पर तुझको सम्मान नहीं !
भारतरत्न मिले यदि तुझको, मान सभी की बढ़ जाती ;
क्षमा करो, हे आर्यभट्ट ! कि हमको शर्म नहीं आती !
आर्यभट्ट यह कृपा करो, कि मन शून्य में गढ़ जाये ;
हर भारतवासी मिले जहाँ, दस-गुना संख्या बढ़ जाये !
वह ग्रह ज्ञान दे देते तो, दुःख-बला हमारी कट जाती ;
क्षमा करो, हे आर्यभट्ट ! कि हमको शर्म नहीं आती !
अलग-अलग उपनामों में, है वंशज तेरी छुप जाती ;
क्षमा करो, हे आर्यभट्ट ! कि हमको शर्म नहीं आती !
जाति, वर्ग, धर्म-भाव में, वंशज यह तेरी बंट जाती ;
क्षमा करो, हे आर्यभट्ट !कि हमको शर्म नहीं आती !
सच है !पूरी दुनिया को तू शून्य का पहले ज्ञान दिया ;
पृथ्वी-परिधि परिक्रमा औ' तुमने 'पाइ' का मान दिया !
सूत्र दिया पूरे जग को, जो दुनिया कभी नहीं पाती ;
क्षमा करो, हे आर्यभट्ट ! कि हमको शर्म नहीं आती !
संसार ऋणी है आज तेरा, तेरे इस अद्भुत ज्ञान का ;
गणित-शास्त्र, ज्योतिष-विद्या और नक्षत्र-विज्ञान का !
आर्यभटीय अनुपम रचना,जो सर्वोत्तम है कहलाती ;
क्षमा करो, हे आर्यभट्ट ! कि हमको शर्म नहीं आती !
राष्ट्र नहीं तुम विश्व गुरु हो, इसका कुछ भी ध्यान नहीं ;
धर्म,जाति में उलझे हैं सब, पर तुझको सम्मान नहीं !
भारतरत्न मिले यदि तुझको, मान सभी की बढ़ जाती ;
क्षमा करो, हे आर्यभट्ट ! कि हमको शर्म नहीं आती !
आर्यभट्ट यह कृपा करो, कि मन शून्य में गढ़ जाये ;
हर भारतवासी मिले जहाँ, दस-गुना संख्या बढ़ जाये !
वह ग्रह ज्ञान दे देते तो, दुःख-बला हमारी कट जाती ;
क्षमा करो, हे आर्यभट्ट ! कि हमको शर्म नहीं आती !
अलग-अलग उपनामों में, है वंशज तेरी छुप जाती ;
क्षमा करो, हे आर्यभट्ट ! कि हमको शर्म नहीं आती !
नमस्कार दोस्तों !
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